घाटियाँ और घुमाव | Ghatiyaan Aur Ghoomav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)य ः घादियाँ श्रोर घुमाव
आया । सोचा, जो वक्त कट जायगा, वहीं अच्छा...्रगर श्रापको ऐत-
राज न हो तो...!” इसके श्रागे स्वतः ही ठहर कर वे पाइप पीने लगे ।
' सैं श्रव तक जिस वातावरण में जीता भ्राया हूँ, उसके कारण मुझ
में एक हीन भावना-सी थ्रा गई है क्योंकि मैंने पाया है कि ऐसे लोग जो
हमारी -मनो भावनाओं से सर्वथा अ्परिचित रहते हैं, और जो “खाना,
पीना, श्र जीना' के ही सिद्धान्तों को मनुष्य का लक्ष्य मानते हैं, जो
मुके एक रहस्यात्मक रूप में देखते रहे हैं, मेरे बारे में तरह-तरह के
प्रपवाद भी उन्होंने फेलाए हैं । इन सब कारणों से मैं समय पड़ने पर
बहुत संक्षिप्त परिचय किसी को दे पाता हूँ । फिर भी उनकी वयोवृद्धता
के निदच्छलपन ने मुझे क्षण भर में ही बाँध डाला । मैं इन्कार न कर
सका । संयत शब्दों में मैंने कहा “मैं एक यात्री हूं । माँ-बाप ने कुमारेश'
का नाम थी दिया था; वे गये तो यह नाम भी उन्हीं के साथ चला गया ।
मुकके दुःख है......” एक फीकी-सी हँसी के स्वर में मैंने बात पूरी की
*...सुके दुःख है कि या तो मेरे जन्मदाता मेरे नामकरण में भूल
कर गये और या संभव हैं, मैं उस नाम की गरिमा को ही भुल बैठा
कस
. “झापसे मिल कर मुक्ते बड़ी खुशी हुई” वे बोले--“खास कर
आपके साफ-साफ बोलने के ढ़ंग को देखकर मुभके श्रपने एक दोस्त की याद
ताज़ा हो गई। उस समय मैं फौज में मेजर था श्रौर वह हमारे दफ्तर
का एक क्लकं, पर साहब कितना साफ शझ्रादमी था कि जो भ्रन्दर से
था' वही बाहर से । सच पुष्ठिये तो फौजी श्रादमी को लाग-लगावट की
बातें अच्छी नहीं लगतीं ।” वे कुछ रुक' गये श्रौर खंखार कर गला साफ
करते हुए उन्होंने फिर कहा “हां, तो लगता है शायद श्राप किसी बारे
में कोई पुस्तक लिखने के लिये घूम रहे हैं या फिर दाहरों की
जिन्दगी से कुछ दिनों के लिये “राग लेकर यहाँ की ताजी हवा ले
रहे हैं ।
“झ्ायद श्रापकी दोनों वातें ठीक हों” मैंने कहा “मैं कई वर्षों से
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