शैली | Shaily
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४)
मुख्य साधन है. । दूसरे शब्दोँम यह कहा जा सकता है कि मन ही
मनुष्यके झ्जित एवं सब्चित ज्ञान-कोपका अध्यक्ष है। जितने
ज्ञान हम दोते हे यह मन उन सबका काल्पनिक चित्र बनाता
और अपने कोषागारमे सब्चित करता चलता है। अतएव हमारे
अनुभवों, तर्का; भावों; सनोविकारों एवं हसारी कल्पनाओं
स्मृतियों; भावनाओं आादिके अनन्त मानस-चित्र हमारी उस
निधिम सब्चित होते रहते है ।
'अस्तु, उपयुक्त वेचित्य-नियमके अनुसार अत्येक मानवके
प्रहण-ठ्यापारकी पारस्परिक सिन्नताकि कारण सभीके हदय-पटत
पर झक्कित उक्त मानसर्चित्र भी परस्पर भिन्न होते हैं । फलत
उन मानस-चित्रोंका जब सरस्वतीके माध्यमद्वारा प्रकाशन किया
ज्ञाता है, झमिव्यव्जन किया जाता है: तब उन मानस-चित्रेंकि!
मिन्नताके कारण एवं प्रकाशनकी क्रिया-मिन्नताके कारण भ्ि-
ब्यक्तिके भावों एवं भाव-बोघक साधनों में भो भेद पढ़ जाता है ।
इस भाँति इमारी अझभिव्यट्जन-प्रणालियाँ भिन्न होती हू और
इनके साघनोंमे भी भेद पड़ जाता है.। अभिव्यक्ति साधनोंमें कैसे
छान्तर पढ़ता है इसका विचार करनेके पूर्वे अमिव्यक्तिके साघन--
वाणोके सम्बन्धम भी संक्षिप्त विचार कर लेना झनुचित न होगा !
उनुकम्पाशील भगवानने मानव-जातिपर विशेष कृपा करके
उसे जिन अनेक शक्तियोॉंका वरदान दिया उनमे बाक्राक्ति सवे-
प्रमुख हे । यदि सानवकी अन्य सभी शक्तियों जेस। हैं वैसी दी
रहती किन्तु केवल वाक्-शक्तिका वरदान उसे प्राप्त न हुआ दोता
तो अपने हृदयंगत अनन्त कल्पनाओं, भावनाओं) एवं अलु
भूतियों के भारसे दबकर उस मूक-मानस-सृष्टिकी न जाने कया
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