शैली | Shaily

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४) मुख्य साधन है. । दूसरे शब्दोँम यह कहा जा सकता है कि मन ही मनुष्यके झ्जित एवं सब्चित ज्ञान-कोपका अध्यक्ष है। जितने ज्ञान हम दोते हे यह मन उन सबका काल्पनिक चित्र बनाता और अपने कोषागारमे सब्चित करता चलता है। अतएव हमारे अनुभवों, तर्का; भावों; सनोविकारों एवं हसारी कल्पनाओं स्मृतियों; भावनाओं आादिके अनन्त मानस-चित्र हमारी उस निधिम सब्चित होते रहते है । 'अस्तु, उपयुक्त वेचित्य-नियमके अनुसार अत्येक मानवके प्रहण-ठ्यापारकी पारस्परिक सिन्नताकि कारण सभीके हदय-पटत पर झक्कित उक्त मानसर्चित्र भी परस्पर भिन्न होते हैं । फलत उन मानस-चित्रोंका जब सरस्वतीके माध्यमद्वारा प्रकाशन किया ज्ञाता है, झमिव्यव्जन किया जाता है: तब उन मानस-चित्रेंकि! मिन्नताके कारण एवं प्रकाशनकी क्रिया-मिन्नताके कारण भ्ि- ब्यक्तिके भावों एवं भाव-बोघक साधनों में भो भेद पढ़ जाता है । इस भाँति इमारी अझभिव्यट्जन-प्रणालियाँ भिन्न होती हू और इनके साघनोंमे भी भेद पड़ जाता है.। अभिव्यक्ति साधनोंमें कैसे छान्तर पढ़ता है इसका विचार करनेके पूर्वे अमिव्यक्तिके साघन-- वाणोके सम्बन्धम भी संक्षिप्त विचार कर लेना झनुचित न होगा ! उनुकम्पाशील भगवानने मानव-जातिपर विशेष कृपा करके उसे जिन अनेक शक्तियोॉंका वरदान दिया उनमे बाक्राक्ति सवे- प्रमुख हे । यदि सानवकी अन्य सभी शक्तियों जेस। हैं वैसी दी रहती किन्तु केवल वाक्‌-शक्तिका वरदान उसे प्राप्त न हुआ दोता तो अपने हृदयंगत अनन्त कल्पनाओं, भावनाओं) एवं अलु भूतियों के भारसे दबकर उस मूक-मानस-सृष्टिकी न जाने कया




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