अकबरी दरबार भाग - 3 | Akabari Darabar Bhag - 3

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Akabari Darabar Bhag - 3 by बाबु रामचन्द्र वर्म्मा - Babu Ramchandra Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. रे५ | 'सम्भक कर यही निश्चय किया है कि दक्षिण की चढ़ाइ पर या तो तुम जाद्यों और या मैं जाई । इसके अतिरिक्त और किसी प्रकार काम में न सफलता हो सकती हे ओर न होगी । यदि तुम जाओगे तो विश्वास है कि शाहजादा तुम्हारे कहने के बाहर या विरुद्ध न जायगा । जब तक तुम वहाँ रहोगे, वह किसी दूसरे से परामश या मन्त्रणा न करेगा और कम साहसवाले, अदूरदर्शी च्और अअयोग्य व्यक्तियों की बातें न सुनेगा । इसलिये उचित यही है कि तुम पहली तारीख को अपने रहने आदि का सामान पहले से भेज दो और आठवीं तारीख को तुम चले जाओ । सेवक ने यह निवेदन कर दिया है कि बकरियों ओर भेड़ें या तो बलिदान के काम आती हैं और या मांस पकाने के लिये । दूसरा क्या उपयोग हो सकता है ? जब श्रीमान्‌ की ऐसी आज्ञा है, तब मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है ।'-- सिनू १००७ हि० में शेख को यह आज्ञा हुइ कि सुलतान मुराद को अपने साथ ले आओ । साथ ही यह भी आज्ञा हुई कि यदि दक्षिण पर चढ़ाई करनेवाले अमीर उस देश की रक्षा का भार ढें तो शाहजादे के साथ चले आओ । ओर नहीं तो शाहजादे को भेज दो ओर स्वयं वहीं रहो । आपस में एका रखो और सब लोगों से ताकीद कर दो कि मिरजा शाहरुख की अधीनता मे रहें । सिरजा को भी झंडा ओर नक्कारा देकर मालवे की गोरे भेज दिया जहाँ उसकी जागीर थी । उसके भेजने का उद्देश्य यह था कि वह वहाँ जाकर सेना का अ्रबन्ध करे और जब दक्षिण में बुलादट दो, तब तुरन्त वहाँ पहुँच जाय |




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