बीमार शहर | Bimar Shahar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शोभा : एक छाया श्७
रहता था । घर में कितने बहाने मैं करती थी । शान्ताक्रज़ से निकलकर सीधे
फ्लोरा, फाउण्टेन जाती थी । चचं गेट स्टेशन में सामने की तरफ जो घड़ी लगी
है, उसीके नीचे खड़ी होकर मैं उसकी प्रतीक्षा करती थी । इसके बाद हम दोनों
खूब सेर करते भ्रौर फिर ग्रांड होटल चले जाते । वहां दो-ढाई घंटे बिताकर हम
अपने-अपने घरों को लौट जाते ।
हमारी मित्रता दिन-प्रतिदिन गाड़ी होती गई। वह श्रक्सर मेरी तारीफ
करता था--मेरी देह की श्र मेरे व्यवहार की । हमारी मित्रता इतनी बढ़ी कि
एक दिन हमने पति-पत्नी बनने का संकल्प कर लिया श्रौर इस संकल्प के साथ
ही मैं मातृत्व के बोक से दबने लगी । उसने मुझे साहस बंधाया । गर्मियों में वह
ब्याह कर लेगा । मैं निद्चिस्त उससे मिलती रही श्रौर श्रपने उदर के तन्वुग्रों को
प्रसन्नता के साथ फंलते हुए देखती रही ।
गरमी श्राई । मैंने उससे श्राग्रह किया, वह श्रपने वचन को पुरा करे । मैंने
माताजी से यह बात बता दी थी । उनको नाराज़ रखकर भी मैं प्रसन्न थी । वे
भी अरब क्या कर सकती थीं । गरमियों के वाद मु्ते पता लगा कि उसने श्रपनी
नौकरी ही छोड़ दी है श्रौर वह वम्बई से चला गया है। कहां चला गया, - कोई
नहीं जानता । अब मेरी स्थिति विस्फोटक थी । घर-भर मेरा विरोधी था । उन्हें
अपनी इउज़त बचानी थी । मैं चक्कर में थी, क्या कहूँ ? कई वार मैंने सोचा,
समन्दर दूर नहीं है, पर मन तैयार नहीं हुम्रा । एक पाप को छिपाने के लिए,
दूसरा पाप करना मैंने ठीक नहीं समझा । पाप कभी पाप से नहीं कटता । उसके
लिए पुण्य ज़रूरी है । मैंने धीरज रखा श्रौर् श्रपनी एक सहेली से सब कुछ मैं कह
गई । उसकी मां नसिंग होम की डाक्टर थी । वहां मैं भर्ती हो गई। दो महीने
बाद मैंने अपने अधरे मातत्व के वोक को उतार दिया आर मैं फिर कन्या रह
गई-उएक कुमारी कन्या ।
यह एक बड़ी घटना थी । इसने मेरा जीवन ही बदल दिया । मैं कालेज में
पढ़ती रही, पर कालेज-जीवन से विरक्त थी । घर से भी वाहर कम ही जाती ।
घर में पुस्तकों में उलकी रहती और अपने मन को स्रमित होने से बचाने का
प्रयत्न करती ।
इसी वीच मेरी शेखर से भेंट हो गई । उसकी विद्वत्ता से मैं दड़ी प्रभावित
हुई । वह जब मेरे श्रघिक निकट झ्राया तो मैंने अपने विगत जीवन के सारे पृष्ठ
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