कबीर ग्रंथावली सटीक | Kabir Granthawali Satik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अलिचना भाग 8 अनन्य भक्ति की प्राप्ति से कवी र-साहित्य को एक नतनता प्राग्त होती है । यह नतनता अत्यन्त विलक्षण है जो कवीर को सिद्धो श्रौर नाथों की परम्परा से सवधा पृथक कर देती हूं । १. अनस्पसाव--भविति ऐसा तत्व है जिसें पाकर कवीर स्वयं धन्य हुए, इसी से उन्होंने अपने साहित्य को भी धन्य कर दिया । कबीर की भवित की शझ्रडिगता झ्ौर अनन्यता, जो देखते हीं बनती है; वंप्णव प्रभाव ही है ' यधा-- “कबीर रेख सिटूर की, काजल दिया न जाई । तनु रमइया रसि रहा, दूजा कहां ससाई 1 इसी अ्नन्यता का परिचय कवीर ने श्रात्मा को 'सन्ती' का रूपक देकर किया है-- “जे सुन्दर साई भज, तज शान की झास । ताहि न कचहूँ परिहर, पलक न छाड़ पास ।”' इतना ही नही, उस ब्रह्म के प्रति इतनी श्रद्धा है कि त्रे उसका कृत्ता बनने मे भी नहीं हिचकते-- “कबीर करता राम का, मुतिया मेरा नाउ । गले राम की जेवदी, जित खच तित जाउ ॥”' इप्ट की' इस भावना पर तुलसी के-- “राम सीं बडी है कौन, सोसो कौन छोटो'' की दत-गत भावनाएं न्योछावर की जा सकती हैं । वावीर पर यह सब विशुद्ठ वैप्णव प्रभाव है । डॉँ० हजारीप्रसाद द्विवेदी जे श्रिद्वानो ने उस मान्यता का कि कवीर की प्रेम-भावना पर सूफी प्रभाव है, खण्डटन कर यह प्ररथापना की है कि कन्नीर की प्रेम की पीर वेष्णव-भावना से प्रभावित है । द्विवेदी जी का कथन है-- “निगण राम का उपासक होने के कारण उन्हे वेष्णव न मानना उस महात्मा के साथ अन्याय करना है । वास्तत्र में वे स्वभाव ग्रौर विचार दोनों से वेंप्णव थे ।”” २. सदाचार--कवीर-क्राव्य में जील, क्षमा, दया, उदारता, सतोंप, धैर्य दीनता श्रौर सत्यता श्रादि का उपदेग भी वेंप्णवों के “रादाचार महत्व' से प्रभावित । यथा--- है बड़ा भया तो का भया, जे से पेड़ खजूर । घंथी को छाया नहीं, फल लागे झति दूर।”' ६ 2 ९ “ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न द्वोर्व । स्वर्ण रलग सदिरा भरा, साध निर्दे सोय ।।”' * ्




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