कबीर ग्रंथावली सटीक | Kabir Granthawali Satik

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
32 MB
                  कुल पष्ठ :  
622
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अलिचना भाग 8
अनन्य भक्ति की प्राप्ति से कवी र-साहित्य को एक नतनता प्राग्त होती है । यह नतनता
अत्यन्त विलक्षण है जो कवीर को सिद्धो श्रौर नाथों की परम्परा से सवधा पृथक
कर देती हूं ।
१. अनस्पसाव--भविति ऐसा तत्व है जिसें पाकर कवीर स्वयं धन्य हुए, इसी से
उन्होंने अपने साहित्य को भी धन्य कर दिया । कबीर की भवित की शझ्रडिगता झ्ौर
अनन्यता, जो देखते हीं बनती है; वंप्णव प्रभाव ही है ' यधा--
“कबीर रेख सिटूर की, काजल दिया न जाई ।
तनु रमइया रसि रहा, दूजा कहां ससाई 1
इसी अ्नन्यता का परिचय कवीर ने श्रात्मा को 'सन्ती' का रूपक देकर
किया है--
“जे सुन्दर साई भज, तज शान की झास ।
ताहि न कचहूँ परिहर, पलक न छाड़ पास ।”'
इतना ही नही, उस ब्रह्म के प्रति इतनी श्रद्धा है कि त्रे उसका कृत्ता बनने मे
भी नहीं हिचकते--
“कबीर करता राम का, मुतिया मेरा नाउ ।
गले राम की जेवदी, जित खच तित जाउ ॥”'
इप्ट की' इस भावना पर तुलसी के--
“राम सीं बडी है कौन, सोसो कौन छोटो''
की दत-गत भावनाएं न्योछावर की जा सकती हैं । वावीर पर यह सब विशुद्ठ वैप्णव
प्रभाव है ।
डॉँ० हजारीप्रसाद द्विवेदी जे श्रिद्वानो ने उस मान्यता का कि कवीर की
प्रेम-भावना पर सूफी प्रभाव है, खण्डटन कर यह प्ररथापना की है कि कन्नीर की प्रेम
की पीर वेष्णव-भावना से प्रभावित है । द्विवेदी जी का कथन है--
“निगण राम का उपासक होने के कारण उन्हे वेष्णव न मानना उस
महात्मा के साथ अन्याय करना है । वास्तत्र में वे स्वभाव ग्रौर विचार दोनों से
वेंप्णव थे ।””
२. सदाचार--कवीर-क्राव्य में जील, क्षमा, दया, उदारता, सतोंप, धैर्य
दीनता श्रौर सत्यता श्रादि का उपदेग भी वेंप्णवों के “रादाचार महत्व' से प्रभावित
। यथा---
है
 बड़ा भया तो का भया, जे से पेड़ खजूर ।
घंथी को छाया नहीं, फल लागे झति दूर।”'
६ 2 ९
“ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न द्वोर्व ।
स्वर्ण रलग सदिरा भरा, साध निर्दे सोय ।।”' *
्
 
					
 
					
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