कबीर ग्रन्थावली | Kabir Granthawali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kabir Granthawali by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

Add Infomation AboutShyam Sundar Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दे मिलता था वह तो था ही साथ ही उस क्षेत्र के सभो मन्दिर नष्ट करा दिए जाते थे । वात यह्दीं नहीं समाप्त हो जाती थी वरन्‌ मन्दिरों के स्थान पर मवजिदों का निर्माण करा दिया जाता था । सक्षेप मे कवीर के युग की राजनीतिक परिश्थिति अस्थिरता विश्वास बात धार्मिक संकीणुंता तथा अमानुषिक अत्याचारों की कथा है। राजनीतिक विद्वोढ भधाति भौर प्रतिद्ठिसा की छाप स्वेत्र अकित है। कोर एक सह्दय व्यक्ति थे । इनके राजनी तिक प्रपंचो ने कबीर को संसार विषयक्त क्षणभगुरता की भावना को और भी हृढ कर दिया । उन्होंने तत्कालीन घुर वीरो को सम्बोधित करके कहा कि तीर तोप से लड़ना शौयें नही शुर धर्म का निर्वाह वह व्यक्ति करता है जो माया के बन्घनो से मुक्त होकर भाष्यात्मिक पथ पर क्षग्रसर हो । तत्कालीन जनता को भौतिकता भी कब्नीर को पसन्द नहीं भाई । वे तत्वदर्शी थे। जानते थे कि जो कुछ भी भौतिक है वद्द क्षणिक है भर इसीलिए उन्होने भौतिकता और माया से दूर रहने के लिए वार-वार सचेत किया । कबीर ने अपने युग मे जनता की स्वार्थपरता भौर घनलिप्सा की भी वडी निन्‍्दा की है । इन्होने उदार वृत्ति और सन्तोप घारण करने की शावदयकता पर भी जोर दिया । कवीर से पूर्व भारतवर्ष की राजनीतिक दशा पर ऊपर विचार हो चुका है 1 विगत पुष्ठो को देखने से प्रकट हो जाता है कि १२०० से १३०० ई० तक देश की दा कितनी धिपम बनी रही । हिन्दू समाज ट्िन्टु थार्मिक परिस्थिति सस्कृति पर निरन्तर आक्षमण हो रहे थे। हिन्दू घर्म को नष्ट कर देने के लिए साम दाम दड और मेद आदि सभी उपायों से प्रयत्न किया ण्या । हिग्दुओ की इस गम्भीर विपम थोचनीय मौर नित्य ही परिव्त॑नक्षील दशा मे ईिन्दुओ का प्में संकट में पह चुका था | उनके राम जनता के हृदय शौर मस्तिष्क से विलग हो चले थे। परिस्विति इस वात की घोतक थी कि मृूरति-उपासक कितने निवंल नदयक्त गौर सकट में थे भौर दूसरी भोर सूति-भजक कितने वलवान भौर कितने ऐपवर्यवानु हैं । मूर्तिमंजकों को सुख भौर एऐएवयं के पालने में झूनते हुए देख कर हिन्दुमी का मूरति- पूजा से विष्वास उठ रहा था । वे उसकी निःसारता स्पप्ट रूपे समक चुके थे फलत महान सघपे गौर क्रान्ति के इस युग में एक ऐसे घामिक आस्दोलन को साचद्यकता थी जो देश के निवासियों को अन्थकार मे प्रकाध दिघ्ा सके 1 निरादा में भाधा का सवार कर सके । इस आवध्यकता फो पूर्ति वेप्णाव लान्दोलन ने को । इस भार्दोलन में परब्रह् के लोक रक्षक लोबन्पालक स्वरूप थी वि के रुप में अधिप्ठा करके उनकी सरत भक्ति का मागे निराध हुदयों को प्रदर्धित किया गया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now