समयसार कलश | Samaysaar Kalash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) है? उसर इस प्रकार है कि इन परिणामों को करे तो जोब करता है भोर जोब भोगता है । परन्तु यह परिणति विभावरूप है, उपाधिरूप है । इस कारण निजस्वरूप विचारने पर यह जीवका स्वरूप नहीं है ऐसा कहा जाता है ।' शुद्धात्मानुभव किसे कहते हैं इसका स्पष्टीकरण कलदा १३ की टीकामें पढ़िये-- 'निरुपाधिरूपसे जीव द्रव्य जेसा है बसा हो प्रत्यक्षरूपसे श्रास्वाद झावे इसका नाम शुद्धा- ह्मासुमव है ।' द्वादशा ज्ञज्ञान प्र शुद्धामानुभवमें क्या अन्तर है इसका जिन सुन्दर क्षब्दोमे कविवरनें कलश १४ की टीकामे स्पष्टीकरण किया है वह ज्ञातव्य है-- “इस प्रसद्धमें घ्रौर भी संशय होता है कि दादशाज्ज्ञान कुछ श्रपूव॑ लब्धि है। उसके प्रति समाघान इस प्रकार है कि द्वावशाज्ज्ञान भी विकल्प है । उसमें भी ऐता कहा है कि शुद्धात्मानुसूति सोक्षमाग है, इसलिये शुद्धात्मानुसूतिके होनेपर शास्त्र पढ़नेकी कुछ भ्रटक नहीं है ।' मोक्ष जानेमे द्रब्यान्तरका सहारा क्यो नही है इसका स्पष्टीकरण कविवरने कलश १४ की टीकामें इन दाब्दोमें किया है-- एक हो जीव द्रव्य कारणरूप भो श्रपनेमें हो परिरासता है श्रौर का्यरूप भी धपनेमें परिशमता है । इस कारण मोक्ष जानेमें किसी द्व्यान्तरका सहारा नहीं है, इसलिये शुद्ध श्रात्माका झनतुमव करना चाहिये ।' दारीर भिन्न है श्र श्रात्मा भिन्न है मात्र ऐसा जानना कार्यकारी नहीं । तो क्या है इसका स्पष्टीकरण कलणग २३ की टीकामे पढिये-- 'शरीर तो श्रचेतन है, विनश्वर है । शरोरसे भिन्न कोई तो पुरुष है ऐसा जानपना ऐसी प्रतोति मिथ्याहग्टि जीवके मो होती है पर साध्यसिद्धि तो कुछ नहीं । जब जीब द्रव्यका द्रव्य-गुरा- पर्वायस्वरूप प्रत्यक्ष श्रास्वाद झाता है तब सम्यग्दशन-ज्ञान-चारित्र है, सकल कमंक्षय मोक्ष लक्षण भोहै।' जो गरीर सुख-दु ख रागद्व ष-मोहकी त्यागवुद्धिकों कारण श्रौर चिद्रप श्रात्मानुभवकों कार्य मानते है उनको समकाते हुए कविवर क० २४ में क्या कहते हैं यह उन्हीके समपंक शब्दों मे पढ़िये -- 'कोई जानेगा कि जितना भी शरीर, सुख, दुख, राग, द ष, मोह है उसकी त्यागबुद्धि कुछ श्रन्य है--कारणरूप है । तथा शुद्ध चिदुरूपमात्रका धनुभव कुछ धन्य है--कार्यरूप है। उसके प्रति उत्तर इस प्रकार है कि राग, द्व ष, मोह, शरोर, सुख, दुख श्रादि विमाव पर्यायरूप १रिराति हुए जीवका जिस कालमें ऐसा अशुद्ध परिशामहूप सस्कार छूट जाता है उसी कालमें इसके झ्तुभव है । उसका विवररण




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