व्यवहारिक ज्ञान | Vyawharik Gyan

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Vyawharik Gyan by राधाकृष्ण नेवटीया

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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असहयोग या तर्कें तअल्लुक श्३ लिये सुकसे ऋग इते.हैं। घन यह है कि मै पहलेहीसे सुर माल था फिसी भो .मालके। चहिषकार विरुद्ध हू ।. पर वहां 'चहिप्कार शब्द्फे : मानी . और हैं” और । दें पूर्ण चिचारके वाद आगामो नई को खिलोंके च हिप्कार को मत स्वी क़ार कर रहा हूं । * और वह क्यों १? समुदाय नेता ओंसे अच्छा नेतृत्व. चाइती ' है, ढुमानी .बारतें नहीं 'याहतो 1. '-पदले को खिलोंके 'लियें चने जाना और, फिर चहां सौगन्ध न खानी इससे जनताक्रा नेता ओंमें अविश्वास हो: ज्ञायगा । ' यद' बात लोगों री: स मममें नहीं आती । उंदरे प्रजामें चुद्धिसेद हो जायगा,) में आपको इस बचनेकी - सलाह देता हू । . पहले चुने जाकर कीं सिलमें नानेके याद वहां सौगन्थ लेनेसे कर-. नेकी रोनि: स्वीकार करनेसे हम अपने हाथों देश को: वेंच देंगे | आपके चुरा लगेगा: ' छेकिन में खुडे हृदयसे कहू गा ज़ितने हिन्दुस्तानो आज नौं।सलमें जाकर न लेनिकी वात 'कह रहे. हैं, मुझे भरोसा नहीं “कि थे ऐसा कर सकेंगे। . ऐसा करने हो. इच्छा .'रखनेवालोंको में सावधान कर रहा अपने: लिये तथा 'उसी घ्रकार - प्रजाफे, लिये « जाल चुन रहे हैं। और उसमें वे. यह मेरी अपनी राय है । मैं ते मानता _ हूं कि प्रजाको ठीक ठीक साफ रास्तेसे खे' जाना चाहिये, अगर इस महान :ज्ञातिके:. साध आप -दिलमगी नहीं करना: चाहते ते! जवत॒क हिन्दुस्तान पर किया हुआ यह डबल अन्याय दूर नहीं होता, तब्रतक , सरकारकी ; तरफसे चाहे . जितनी बड़ी -झपाको'




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