अभिमन्यु -बध | Abhmanyu Badh

Abhmanyu Badh by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अभिमन्यु-बध [ ছু]. दीज जाय उत्तर हमारो दुरजोधन कौ, पथ परिसोधन को हमको दिखेहे को ? “सरस' बखाने , यो प्रमाने धमेराज धीर , बीर बिजयी जो , तिन्है ˆ दारिबो सिखेहै को ?? चक्रधर जोगीस्वर चक्र-मेद-दच्छ्‌ जाक“ , पच्छ मादि, ताको क कुचक्र बिलखैहै को १ जोलों ज-बिजै के इस कीन्हे छत्र-छाया सीस , तौलों जय-पत्र कहो हम सौ लिखैहे को ९९ | ७ | एहो दूत ! पाण्डु-पूत बीर बिग्रही हे पंच , কন হী কী” ब्रिग्रही प्रपंच-सत हरि है । जौलो धमं-धूम तोलों मसक करें गे कहा ? नर-हरि-ओर कहा ससक निहरि है ९९ सक्र-मदहारी चक्रधारी जौ हमारी अर , हं कं रखवारे चक्रधारे नित्त हरि है । ऐसी तो कुचक्र रच्यौ एकं चक्रव्यूह कहा , कोटि चक्रव्यृह सो न पांड-पूत हरि है ॥




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