देवाधि देव भगवान पार्श्वनाथ | Devadi Dev Bhagawan Parshwanath

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Devadi Dev Bhagawan Parshwanath by जयप्रकाश शर्मा - Jayaprakash Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(श््) 'हैर कर सुख के मुक्त द्वार तक पहुंचते हैं । तीर्थंकर वास्तव में. थे. ्‌ [3] जो महान आत्म कल्याणकारी तीर्थों की 'स्यांपना करते । तरफ जिन्होंने श्रपते सम्यक केवल ज्ञान से समस्त पदार्थों कों : 'देख लिया है । [3 शिव स्वरूप । [3 धर्म तीर्धों के संस्थापक । ं [3 जब नक्षत्र सर्वोच्च पराकाष्टा पर पहुंचता है तो त्रिभु- . बन सिर शेखर तीथें कर जन्म लेते हैं ।, एक महापंडित ने इस विषय में लिखा है-- तीर्थ केर-पद महा भीग्यिशाली महापुंरुष को ही प्राप्त होता हैं। सामान्य सत्र सर्वे दर्शी केवली साधू हो जाना सुगम है । प्रत्येक तीर्थ कर के समय में वैसे संमात्य केवली श्रसंख्यतीत होते हैं। किन्तु त्रिभुवन के महापुरुषों में मुकुटमणी रूप तीर्थ कर होना सुगस नहीं है । धर्म चक़ृतित कारक महान पद श्रतेक जन्मों के '्रम श्रौर योग साधना से नसीव होता है । मानव जन्मगत पुर्णतें: को प्राप्त करके ही तीर्थ कर पदवी मिलती है । तीर्थ कर इसी लिये ही श्रनुपम है । उन जैसा श्रीर कोई नहीं है । धमं तीर्थ के संस्थापक होने के कारण वह बड़े बड़े श्राचार्यों वारा झ्भ्चिनघ हैं । वह लोक के सर्वोपरि सवेतोभद्र कत्यारकर्ता जो हैं । स्वामी समन्त भद्दाचायें उनके तीथें को सर्वे श्रापदागों का श्रन्त करने का सर्वोदय तीर्थ घोषित करके उनकी महानता को व्यक्त करते ह (सर्वापदा मम्तकरं तिरनं सर्वोदयं तीथें निदं त्वमेव । ) लोक कल्याण के सर्व से नेता होने के कारण ही वे सर्वोत्तिम है! भागे कहा गया है । मानव झनेक जन्मों में सत्य और अर्हिसा




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