सूक्ति त्रिवेणी भाग - 2 | Sukti Triveni Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उस्सुरसैय्या परदारसेवा,
वेरप्पसवों च झनत्यता च ।
पापा च मित्ता सुकदरियता च,
एते छ ठाना पुरिसं धघंसयन्ति ॥
निद्दीब्सेवी न च बुद्सेवी,
निहीय॑ते कालपक््खे व चन्दो ।
न दिवा सोप्पसीलेन, रत्तिमुदठानदेस्सिना ।
निच्च॑ मत्त न सोण्डेन, सकका श्रावसितु घर ।
झ्र्तिसीतं श्रतिउण्ह॑ं,. भ्रतिसायमिदं भट्ट ।
इति विस्सट्ठकम्मन्ते, भ्रत्था श्रच्चेन्ति माणबे ॥।
योध सीतं च उण्हं च, तिणा भिय्यो न मज्ञअति ।
कर पुरिसकिच्चानि, सो सुखं न विहायति ॥।
सम्मुखास्स वण्णं॑ भासति ।
परम्मुखास्स भ्वण्णं भासति ।
उपकारकों मित्तो सुहदो पिता,
समानसुखदुक्खो सुहदो वेदितव्वों ।
पण्डितो सीलसंपननों, जल झग्गी व भासति ।
भोगे संहरमानस्स, भमरस्स इरीयतो ।
भोगा संमिचयं यन्ति, वम्मिकोवृपचीयति ।
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