तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार भाग - 6 | Tattvarth Shlokavartikalankar Bhag - 6

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार भाग - 6  - Tattvarth Shlokavartikalankar Bhag - 6

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माणिकचंद कौन्देय-Manikchand Kaundey

Add Infomation AboutManikchand Kaundey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ रै६ |] सल्लेखना आत्महत्या नहीं है ६१६ सूत्र र३ दुर १-२७ शंका आदिका स्वरूप दर प्रदंखा और संस्तवनम अन्तर ध्२२ आंगार और अनगार दोनों सम्पग्दृष्टियोके पांच अतिचार हैं ६२२ दर्दानमोहतीय कर्मोदयसे सम्पगद्दन में अतिचार ६२३ सुश्र २४ ६२७-६२८ पांच पाच अतिचार गुहस्थके हैं चर सूजन २५ इर९-६३० बघ बन्घधन आदिका अर्थ ६२९ सूत्र २६ द३०-६३र मिथ्योपदेश आदि अतिचारोका अर्थ ६३० सूत्र २७ ६३ेर-६३३ स्तेन प्रयोग आदि चोरीके अतिचारोका कथन ६३२ सूत्र २८ ६३२-द३े५ परविवाहकरण आदि ब्रह्माचर्य ब्रतके पाच अतिचारोका कथन देह सूत्र २९ द३५ण-६३७ अपरिम्रह ब्रतके अतिचार ६्देप्‌ सूत्र ३० ६ ३७-६३ ८ दिगुब्रतके अतिचारोका विशेष कथन ६३७ सूत्र ३१ इ३े८-६३५ देश ब्रतके अतिचारोका कथन ध्श्प सूत्र ३२ ६३९-६४१ अनर्थदण्ड श्रतके अतिचारोका कथन ६३९ सूत्र ३३. दुख १-दशर सामायिक ब्रतके अतिचार ४ सूत्र 1४ दहरे-प४७४ प्रोषघोपवासके पाच अतिचार ६४३ खुन्न ३५ दंशह-६४६ उपभोग परिभोगके अतिचार ््ड सूत्र ३९ अतिथि संविभाग ब्रतके अतिचार सूत्र ३७ सल्लेखनाके अतिचार सूत्र ३८ दानका लक्षण स्वका अर्थ घन है अनुग्रह शब्दसे स्वमास दानका निषेध हो जाता हैं क्योकि महापकारक हैं सूत्र ३९ दानमे विशेषताकां कारण विधि, द्रव्य, दातार भर पात्र इन सबकी विशेषता विधि-द्रव्य भादिकी चिशेषताम बहिरग और अंतरग कारण प्रकारके है दानमें सकलेश रहिततास उत्क़ष्ट पुष्य, किचितू संक्लेशतासे मध्यम पुण्य, बृहत्‌ संक्लेशतासे अरप पुण्य होता है दव्यसे पात्रमे यदि गुणोकी वृद्धि होती है तो पुण्य होता है, यदि दोषकी वृद्धि होती है तो पाप बंध, यदि गुण व॒ दोष होते है तो मिश्र बंध होगा पात्रके अनुसार दानका फल जैसे कृषिमे भूमि जल घाम आदि कारणों से बीजके फलम विशेषता हो जाती है बैसे ही सामग्रीके भेदसे दान फलमे विक्षे- पता हो जाती है अनेकान्तके द्वारा पर मतोंका खंडन विशुद्ध परिणामोधे अपाजकों दिया गया दान सफल, और संक्लेशसे पत्रको दिया गया दान निष्फल होता है । बशुद्ध अवस्था मे पात्र दान न. करनेसे पुष्य बंघ तथा भशुद्ध पदार्थके दानसे पाप बंध होता है ऐसा अनेकान्त व स्यादाद है सातवें अध्यायका सारादा हू एद--द ४७ दि द४१७--६ ४८ ६४५७ दूं रद ० ६, ६४९, ४९ घिप्ठन-र्द ६५० द५्‌्ह इप्श दर ६४ दे प् दि५४ पशु ७ द्ए०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now