हिंदी कथा कोश | Hindi Katha Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.38 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आखंडल-ायु ]
आखंडल-इंद्र का पर्याय । दे० इंद्र ।
अआगरत्य-अगरत्य ऋषि के पुत्र को नाम ।
'उाग्नीघ्र - प्रिघत और वहिष्मती के उ्येष्ठ पुत्र का नाम ।
विप्णुपुराण के अनुसार इनका नाम झपझीघ्र था । उजजं-
स्वती नाम की इनकी एक भगिनी थी । दे० “अझीघ् ।
अआजकेशिन-इंद का नामांतर । इन्होंने बक का श्रतिकार
किया था ।
बाजगर-महाभारतकालीन एक प्रसिद्ध बाह्मण का नाम
जो झयाचित बृत्ति से रहते थे ।
अआज्य-सावणि मनु के पुत्र का नाम ।
अआज्यप पितृगण में से एक । ये त्रह्मा के मानसपुत्र पुलह
के वंशज थे ओर यकज्ञों में झाज्यपान करने के कारण
इनका यह नाम पढ़ा था ।
अआटविन्- याज्ञवल्क्य के वाजसनेय शिष्य । व्यास की
यजु: शिप्य-परम्परा में इनकी उत्पत्ति मानी जाती है ।
ाडि-झंघकासुर के पुत्र का नाम । इसने घोर तपस्या के
द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके अमरत्व का चरदान माँगा
कितु ऐसा असंभव होने के कारण इसे इच्छानुसार रूप
परिचतंन करने का वर मिल गया जिसके बल पर निर्भय
दोकर इसने अनेक अत्याचार किये। शिवाजी का पराभव
करने के लिए यह कैलास गया जहाँ वीरभट् से इसका
युद्ध हुआ । युद्ध में खत्युभय से इसने सप॑ का रूप धारण
किया कितु उसमें भी प्राणों का संकट देखकर इसने
पावती का रूप घारण कर लिया । झंत में शिव को इस
कपट रूप का पता लगा झऔर उन्होंने इसका वध किया ।
आतातापि-एक प्राचीन ऋषि तथा धर्मशास्त्र अं थ के
प्रयेता ।
तआत्मदेव-एक प्रसिद्ध ब्राह्मण का नाम जो तंगभद्ा के
तट पर रहते थे और निस्संतान होने के कारण बहुत
चितित रद्दा करते थे । एक सिद्ध ने पुत्रोत्पत्ति के लिए
इनकी परनी को एक फल खाने को दिया किंतु उसने वह
फल अपनी बहन को दे दिया । बहन ने भी स्वयं न
खाकर उसे एक गाय को खिला दिया । ब्राह्मण को जो
पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम घुंघकारी पढ़ा. झऔर गाय
को जो पुत्र हुआ उसके बैल जैसे कान होने के कारण
उसका नाम गोकण पड़ा । घुंघकारी बढ़ा झत्याचारी हुझा
और गोकर्ण को कप्ट दिया करता था । गोकर्ण ने ज्ञान
माग॑ का आश्रय लेकर परसार्थ प्राप्त किया ।
च्ात्रय अत्रि सुनि के पुत्र । कारलांतर में अत्रि कुलो रपत्र
सभी त्राह्मणों की संज्ञा झात्रेय हो गई ।
'झात्रयी -अत्रि मुनि की कन्या का नाम । इनका विवाह
अभि के पुत्र झंगिरा के साथ हुआ था जिससे इनके पुत्र
“अझगिरस' नाम से प्रसिद्ध हुए । दे० “'अगिरा' ।
'आत्रेयस्पति-एक स्खति अ्रंथ जिसके रचयिता अत्रि
मुनि कहे गये हैं ।
आदित्य -अदिति के पुत्र घर एक मसिद्ध वैदिक देवता ।
'चाजुष मन्वंतर में इनका नाम त्वप्टा था । वैवस्वत मन्वंतर
में ये झादित्य कहलाए । कालांतर में इन्हें सूये का पर्याय
माना जाने लगा । पहले झादित्यों की संख्या छः ही थी
जो क्रमशः मिश्र, झर्यमन्र, भग, वरुण, दुक्ष तथा अंश
[ ११
के नाम से प्रसिद्ध थे । वेदोत्तर काल में प्रत्येक मास के
लिए एक एक आदित्य की कल्पना हुई । तैत्तिरीय ब्राह्मण
में भी झाठ श्रादित्यों के नाम झाते हैं--१. झंश, २.
भग, दे. घात, ४. इंद्र, १. चिवस्वन् ; ६. मित्र, ७. वरुण
तथा ८. अयेमन् । मतांतर से श्राठवं झादित्य झदिति के
पुत्र मातंरड थे । झादित्य वास्तव में एक देववरग का नास
था जिसमें स्वघ्रमुख विष्णु थे ।
वादित्यकेतु-छतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम जिसका वध
भीम ने किया था ।
'आदिवराह-भगवान् विष्णु का एक अवतार जो हिरण्याक्ष
से प्रथ्वी का उद्धार करने के लिए हुआ था । दे० “वराह ।
आधघूत रजस्-गय राजा के पिता का नाम । म्तांतर से
इनका नाम झमूर्तरयस् था ।
ब्ानंद-१. एक प्रसिद्ध ब्राह्मण जिनकी उत्पत्ति सहघि
गालव्य के कुल में हुई थी । २. मेघातिथि के सात पुत्रों
मे से एक | ३, महात्मा वुदद के एक शिप्य जिनमें तथागत
का इतना विश्वास था कि वे इन्हें अपने समान ही
समसते थे ।
आनंदर्गिरि-शंकराचार्य के शिप्य झऔर वेदांत के प्रकांड
पंडित 'शंकर दिग्विजय इनका प्रसिद्ध ग्रंथ हैं, जिसमें
आचार्य के शास््रार्थो तथा मुख्य कृत्यों का विवरण है ।
शंकर के “शारीरक भाष्य” की टीका, तथा गीता
और उपनिपदों पर इनके भाप्य अत्यंत विद्वत्तापूरण
।
चआनंदुवधन-एक मसिद्ध काश्मीरी पंडित तथा काव्य-
शाख्र के आचार्य ।'काव्या लोक' “ध्वन्या लोक' तथा 'सहद्या-
लोक' इनके मसिद्ध अंथ हैं । ये ध्वनिवादी हैं श्र अलं-
कार शास्त्र के आाचार्यों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है ।
कर्हण की राजतरंगिणी में एक स्थल पर इनका जिक्र
आता है जिसके अनुसार ये काश्मीर के राजा झवंतिवर्मा
के राजपंडित सिद्ध होते हैं । झवंतिवर्मा का समय नवीं
शताब्दी माना जाता है ।
आनकदुंदुमि -कप्ण के पिता वसुदेव का एक नामांतर ।
इनके जन्म के श्रवसर पर देवताओं ने आनंद से दुंदुभी
बजाई थी इसी से इनका यह नाम पढ़ा | दे०
वाले ।
ब्आनते-राजा शर्याति के पुत्र का नाम ।
आपस्तंत्-मसिद्ध वैदिक ्षि तथा स्पतिकार । इनका
समय तीसरी शताब्दी ई० पू० माना जाता जाता है ।
इस नाम के कई ऋषि मिलते हैं कितु दो विशेष प्रसिद्ध
हैं--एक सृूत्रकार और दूसरे स्खतिकार । इनके नाम पर
ापस्तंब संहिता भी असिद्ध है जिसमें कुतक्मों के फल
तथा पापों के प्रायश्चित्त का विस्तारपूर्वक विवरण है ।
धर्म में क्षमा का स्थान सर्वोपरि माना गया है ।
आपिशलि-एक प्रसिद्ध बैयाकरण जिनका उल्लेख पाणिनि
ने संधिप्रेकरण में किया है । इनके द्वारा प्रणीत
झापिशलि नामक अ्रंथ में काशिका तथा कैयट का उल्लेख
होने से ज्ञात होता है कि काशिकाकार तथा कैयट इनके
के पूर्व हो चुके थे ।
आयु-प्रसिद्ध चद्वंशी राजा पुरूरवा के ज्येष्ठ पुन्न जिनका
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