धर्म विज्ञान | Dharm Vigyaan

Dharm Vigyaan by श्री स्वामी दयानन्द - Sri Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आखुनिक चिज्ञान मोर सनातनधर्म । छ ज्ञातिने ज्योतिषका ज्ञान लाभ किया था । सिश्रदेशमें सायन्सविंघयक जितनी पुस्तक हैं. उनसेसे प्रायः सभी देवताओंके कहे हुए पतित्र अन्थ नामसे प्रसिद्ध हू । इस घकारते पश्चिमी तथा पनदेंशीय चिट्ठानोंने धर्म, सायन्स और प्रथक्‌ पथक स्थान निर्देश करके इन तोनौका परस्पर अभिन्न सस्वन्घ चता दिया है। अब धर्म कया वस्तु हे इसीका तस्वनिणय किया जाया | पश्चिम देशके छोग धघर्मकों रिलिजन (८1180 ) कहते हैं । किन्तु रिंलिजन शब्द के व्युत्पत्तिलभ्य थर्थसे आर्यशास्त्र चर्णित 'धर्म' की पूर्ण छक्षण चरितार्थ नही होता है । रिलिंजन शब्द १८-०8८६, ०-६0 लि सो णाह 985: किए प्रेणए फाणाछ गर्थात्‌ जो शक्ति मनुष्यकों पाप करनेसे बचावे इसी माचका योतक है । सैतिक जीवनकों उसस पश्चिमी रिलिजन शब्द्से यही भर्थे निकछता है । किन्तु शआार्यशास्त्रवर्णित घर्म' शब्दका तात्पर्य इससे चहुत व्यापक है । घर्म शब्द “४” धातुसे बनता है जिसका भर्थ यह होता है कि “जो शक्ति चरान्वर समस्त विश्वको धारण करे उसीका नाम धर्म दे” । धर्मको सर्चतोब्यान्त शक्ति जड चेतनात्मक समस्त घिश्वकी रक्षा करती है. । “धर्मों विश्वस्थ जगतः प्रतिष्टा' यह तैत्तिरीय आरणयकका मन्त्र है । अर्थात्‌ समझ विश्वकी स्थिति धर्मके झारा हो होती है । आर्यशास्त्र में बह्मारडके रच्तक चिप्सुझी मूर्ति घर्मसूर्ति कहीं गई है । “यन्नो वे विष्णु' 'यन्नेन यक्षमयजन्त देवा इत्यादि श्रुति इसी अधेका चोधक है । श्रीमगवान्‌ धर्मचूति धर्मकी रत्ताके लिये समसन चिश्वसे व्याप्त रहते हैं । यथा ऋग्वेदसहिना १1११२९१८ “'घ्ोणि पदा विप्णुगपा अदास्य: | घर्माणि घार्यन” | अनन्तशक्तिधारी चिश्वर्क्षक विष्णु रकाके लिये तीन चरणसे तीनों छोक व्याप्त किये हुए रहते हैं । धर्सकी मूर्ति है इस लिये उन के चार हाथ होते हैं । उनका चक्रयुक्त हाथ धर्मका, गदायुक्त हाथ जर्थका, कमलयुक् हाथ काम ( शिश्पकला ) का और शखयुक्त. हाथ मोच्तका देनेवाला है. । क्षत्रिय, सैश्य, शुद्र और इन चार चर्णोंके साथ यथाक्रम इन चार हाथौका सस्वन्ध है । इसी कारण आर्यशास्त्रमे घर्मसे चाहर कोई चस्तु नहीं है । पश्चिम देशमें “खड़ा, शन्तुऔकों मारना युदधषिद्या है, किन्तु श्रार्य- शास्त्रमं यह क्षत्रिय धर्म है । घहां की राजनीति यहां का राजधर्म है । बहांका चाणिज्य, व्यापार, आदि यहांका चेंश्यधर्म है । घहांकी कारगर




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