जगत सेठ | Jagat Seth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
507
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा सहताबराय को अवड्य सिली थी और इसका पालन करना उन्होंने
अपना परम कर्तेष्य समझा । उनके या टूसरो फे लिए अपने देदा-काल से ऊपर
उठ जाना या बीसवीं सदी में पहुंच जाना असभव था ।
इसमें सदेह नहीं कि बगाल में अगरेजी राज्य की स्थापना में जगतसेंठ
से बहुमृत्य सहायता मिली, यद्यपि अठारहवीं दाताव्दी में यह निश्चित था कि
उस सहायता के बिना भी दह राज्य स्थापित होकर ही रहता । इतिहास
की लीला को व्यापक दृष्टि से देखने दाले यह स्वीकार किये बिना नहीं रह
सकते कि मुगलों की अधघोगति लौर घिनाश सें अगरेजो का अभ्युदय
और राज्यारोहण सन्लनिहित था। एक तो. उनके प्रतिद्वद्टियो में कोई
भी उनकी वरावरी करने वाला न था; दुप्तरे, पलासी की लड़ाई का फैसला
करनाल में और बक्सर की लड़ाई का फँसला पानीपत में ही हो चुका था ।
सौर जाफर ही नहीं; मीर कासिम भी सरने से पहले ही मर चुका था और
क्षय तथा जय कराने वाला काल अंगरेज-मात्र को पुकार कर कह चुका था कि
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ, यों लभस्व, जिंत्वा शतरून्भुड्कव राज्य समृद्धमु ;
मयैवंते निहता; पूर्वमेव, निमित्तमात्र भव “हैट-धघारिनु !
बंगाल में पडने वाली नींव पर ही वह इमारत खड़ी हुई जो बढते बढ़तें
एक दिन आसमान चूमने वाली थी । यद्यपि उस विस्तार की कहानी इस पुस्तक
की दृष्टि से विषयान्तर है, तथापि उसका भी उपक्रम शुजाउद्दौला के १७७५
में मर जाने से पहले ही हो चुका था। क्लाइव के प्रस्थान करने से पहले ही
जगत्सेठ के घर का चिराग टिसटिमाने लगा था भौर वारेन हेस्टिग्स के जाते
लाते तो पछवा हुवा का झोका उसे गुल कर चुका था ।
कई ठाताध्दियों से हिंदू-जाति' इतिहास लिखने-पढ़ने की उपेक्षा करती
लाई हूं । इस कारण जगत्सेठ-वश का कोई ऐसा यृत्तान्त नहीं सिलता जो :
उसका लिखा-लिखाया हुआ हो । अन्घकार में उसके इतिहास पर “मुता-
सरीन” जेसे ग्रथ या ईस्ट इडिया कंपनी फे कागजात से जो प्रकाश पड़ता है
वह गनोमत हैं । यह बात निश्चित-सी है कि चाव्ही वातों की जिज्ञासा पूरी
करने के लिए नयी सासग्री आज मुशिदाबाद सें या अत्यन्न मिलने वाली नहीं ।
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