संस्कृत कवि दर्शन | Sanskrit Kavi Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख साहित्य किसी देश की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक तथा जातीय भावनाओं का प्रतीक होता है। संस्कृत साहित्य भारत का राष्ट्रीय गौरव है । प्रत्येक देगा बे साहित्य सें उस देश के निजी गुण-दोष प्रतिधिस्त्रिति होते हैं। संस्कृत साहित्य भारत के गर्वोन्नत भाल की दीप्ठि से संक्रान्त जीवन काचित्रहे। प्रत्येक देश या राष्ट्र का जीवन उत्थान-पतन की करवर्टे छेता अतीत से भविष्य की ओर बढ़ता है। भारत के इतिहास में एक ओर स्वतन्त्रता का विजयघोष, सम्द्धि का स्वर्गप्रकादा उद्बेखित है, तो दूसरी ओर पराधीनता की सुमूषुता, कायरपन की म्लाववदुनता तथा फोरी विलासिता की काढिसा भी पाई जाती है। इतिहास के इन सुनदरे और मलीमस दोनों तरह के चित्रों को साहित्यिक कृतियों में प्रतिफलित देखा जा सकता है । दर्में कुत्सित, कृत्रिम कार्यों की अस्वा- भाविकता से इसलिये आँख नहीं मूंदना चाहिए कि वे हमें द्ासोन्सुख काल की चेतना का संकेत देती हैं। वे हर्मे इस बात की चेतावनी भी देती हैं कि समाज के उदात्त गोरव के लिए इस प्रकार के सादित्य की भावश्यकता नहीं । हसें कालिदास के काव्य की उदात्तता अपेक्षित दे, किन्तु यदद सचाल पेदा दो सकता है, कि माघ या श्रीदष के कार्व्यों का सामाजिक सूर्य दया है ? आाज के समाज-वेज्ञानिक दृष्टिठोण को लेकर चलने वाले मानवतावादी आलोचक माघ या श्रीहप के विपच में ही निणय देंगे । साथ ही आज की रुचि के अनुकूल न तो उनके अलड्लारों का प्रयोग बन पढ़ेगा, न विविध शास्त्रों का प्रगाढ़ पाग्डित्य ही । पर, इतना होने पर भी माघ, श्रीहष, मुरारि या त्रिविक्रम भट्ट की छृतियों का




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