अनुसंधान के मूलतत्त्व | Anusandhan Ke Mooltattv
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ अ्रतुसभान के मूल तत्व
पाए बड़ा सकते दे. प्सनिए भनसंधाप की पूर्णता केवस इसी भ्र्ष में समझी जा
सकती है कि प्रस्तुत घनुसबात का स्तर ठंचा हो भौर स्तर की ऊंचाई की माप का एुकमारते
दैमागा यह है कि कोई प्रनुप्रभायक प्रपती म्टा्ों बारां शान की सीमा को बड़ाँ तक
बड़ा सका धौर फिर चसमें एमें बया सूत्र उससे शोड़े शितकों लेकर बहू स्तय भवन बात
बे समम ट्रसरे सहकर्मी उसके शान के विधिष पढ्मों को भागे बडा सकें । प्रविकराश
निषदमिधासयों में सोप प्ररप की अँज के जो मातदंड रखे गये है उनका सार यहीं है
कि कोई शोप प्रबस्प भ्पने विपय के ज्ञात की दिप्ा में पौर जिधिप्ट योगदान करता है
या गड्डी ज्ञात को कुछ थी पाने बढ़ाता है मा तही । पौर यह शाम केसे बडता है इसकी
जांच दो बातो से करती पहठी है । या ता ते तर्प्पों का भन्वपत्र किया गया हो मा
प्रनुसबापक ने घपती स्वतरत्र समासोबता पफ्ति का परिचय दिया हो । पनुसपान की
सफसता का एक प्रादपर नये तप्प की उपलब्धि के अवाम मिसी ज्ञात तथ्य की प्सितेत
ब्यात्या को मी प्राय स्वीकार किया जाता है । घगुर्सवित्सु की समासोचता-सव्ति भौर
जिवक-बुद्धि के जे दो सक्य प्रमाण है । इनमें से कम ऐे कम एक का परिचय उसकी कठि
में ्रबश्म होना भाहिए। इसके प्तिरिक्त प्रमरण की कप-सरबा उसकी पाहिरियिक परिवेश
भौर उसकी प्रस्तुत की झत्ती भी एक भरयत्त भावदयक पंग है ।
प्रतुसपात में जहाँ तक समय हो कटता से धन का प्रयत्न करता चाहिए ! मई
कदूता तम्पा-सम्बन्धी मी हो सकती है भोर केवल प्रमिस्पषित-सर्भी सी । इत दातों प्रकार
की कटतापों से अचकर परयत मापा भौर सतुत्तित बिधारों को ही पोष प्रबरण में सबात
मिलता भाहिये । कहां था सगता है कि पगुसंबायक हो सत्य का प्त्वेपन करते हूं तसहें
इस बात की शया परवाह कि ततकी बात किपी धर्म को मिस लगती है मा भधप्रिम !
पोष-प्रधो को प्रस्तुत करने में भी यदि यहीं देखा जाय कि लेखक की बात लोगो को प्रिय
लगे तब ठो उपन्पास कविता तथा शाथ प्रबम्प में कोई मेंद ही नही रहा । में मातता
हैं हि सोषफर्ता चोबप्रियठा के मिये लासाधित तट्डी रइता गा विधिकश्प कप से तम्य
गा एद्धाटन करता है । दिल््तु इसका प्रथ यह सौ सही होता भाहिए कि लोगो को म#पर्ष
ही पपने विरख साहा बर लिया जाय पौर प्रपतें मे सिप् मत बालों को पपता शजु अना
लिया जाय । इमारं जहां था भ्राददा ठा महू है कि साय मी पड़े पीर पिज मी कह । सरय
भौर प्रिम में विराष मड्ढी होगा चाहिए । जहाँ जिरोध हो बहा सेमल लाता चाहिए,
बदन यहाँ तर बहा पया है कि बहाँ मौत हा जाता धाहिए । यह ठीक है कि गमीकमी
परधिप सर्प शा भी उदपादल करता पता है । एव प्रबरप के सेखक को थी उससे इरता
सही चादिए । परम्तु एसी रिवति में उससे ऋम है कम इस आत का तकाजा पिया था
शइता है दि बढ जिला घप्िए गरए था उशुव्यादुश अर का है दइ पुष्ट पाएपाएं। पर पा
हो भौर उतझा प्रमिस्पतित शिसी पा में भी पदिप्ट मड्ी हो । प्रामाधिकता पौर दृद़ता
वी प्र पत्तिप्टता था राज गदापि सही हो गउता 1
एट पिविय घौर है जिसका सीमाओं पसुगपाम में कौ लाती चाहिए । यह जिपय
गाय गे गे सम्बद्ध है । घगुसधात ऋ लिए प्राय दो बीप कार्ड था भी पापाए प्रहध अएतां
बडा है । जैसे गपाजविजञास पाषाजिज़ास धपना सौक गालिय में दाजीय गार्य गरना पहठा
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