हिंदी महाभारत | Hindi Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आश्वसेचिकपव जीत सकते थे । अब समस्त राजा उसके अधीन दो गये । वह अपने परा- कम और अच्छे चाल चलन से समस्त राजाओं का सिरमौर बन गया । . झब वह अविक्षित नाम से घ्रसिद्ध हुआ । घर्मात्सा अविक्षित, शूरता में इन्द्र के समान, तेजस्विता में सूप के समान, क्षमा में प्रथिवी के समान, जुद्धि में बृहस्पति के समान और मन की. स्थिरता में हिमाचल की तरह था । वह बड़ा घर्मात्सा था और यज्ञाचुषान सदा किया करता था । वह बड़ा पैयंवान जितेन्द्रिय था । इस राजा ने अपने सदू व्यवहार और जितेन्द्रियत्व से समस्त प्रजाजनों को प्रसन्न किया । जिस सम्राद अविक्षित ने एक सौ अधमेघ यज्ञ किये और स्वयं विद्वान अज्धिरा ने जिसे यज्ञ कराये, डस घर्मास्मा अविश्षित के पुत्र राजा ससर्त्त थे । यह बड़े धर्मज् थे । इनके शरीर में दस हज़ार दाधियेां जितना बल था । यह अपर दिष्णु के समान थे । महायशस्वी चक्रवर्ती राजा मस्त अपने गुणों से अपने पिता से भी अधिक चढ़ बढ़ कर निकले | घर्सात्सा महाराज मस्त ने सोने चाँदी के हज़ारों थज्ञीय पात्र बनवाये और हिसालय के उत्तर अश्वल में मेरा पर्वत पर, जहाँ एक बहुत बड़ा सुवर्ण का चूक है, यज्ञकार्य झारम्भ किया । तदनन्तर उन्होंने सुनारों से सुवर्ण के कुण्ड, पात्र और पीढ़े बनवाये । यज्ञऊुणडों के निकट ही यज्ञवाद था | घर्मात्सा पथिवीपति महाराज सरुत्त ने समस्त राजाधों सहित उसी स्थल पर चिधिपूर्वक यज्ञ किया । पाँचवाँ भ्रध्याय युधिष्टिर और वेदव्यास को कथोपकथन ._...... युधिष्टि ने कहा--हे वाग्मिवर ! महाराज ससत्त कैसे पराक्रमी थे श्र उन्होंने किस प्रकार इतना घन सच्चित किया था ? भगवन्‌ ! वह घन अब कहाँ है? थऔर वह हर्मे भ्रब क्योंकर सिल सकता है ? व्यास ली बोखि-दे राजच्‌ ! जिस प्रकार, प्रजापति दत्त के सुर और थसुर बहुत से




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