चीनी जनता के बीच | Chini Janta Ke Beech

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत और चीन के पारस्परिक सांस्कृतिक सम्बंध प्रायः विछिन्न ही रहें; . यद्यपि दोनों की पारस्परिक सद्दानुभूति और झुमिच्छाओं में कोई भी परिवर्तन नहीं आया 1 “रह सन्‌ १९९४ में विश्व कवि रवीन्द्रनाथ दाकुर ने चीन की यात्रा की थी । सदियों चाद अपने भारतीय सित्र से सिलिकर, चीनी जनता ने हार्दिक श्रसन्नता व्यक्त की और अनेक उपदारों आदि से उनका स्वागत क्रिया था 1 कुछ समय बाद चीन पर जापानी आक्रमण दोने के परचात, पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सन्‌ १९.३८ में जापानी माल के .चद्िष्कार की घोषणा की और चीनी जनता करे प्रति सदभावना से एक मेडिकल सिशन सेजा था। डा. द्वारकानाथ कोटणीस उस मिदान के सुख्य सदस्यों में थे, जिन्होंने युद्ध में घायल हुए व्यक्तियों की चिकित्सा करते हुए चीन की भूमि में ही . अपने प्राण दिये थे और अपने बलिदान से भारत और चीन की मित्रता को अखण्ड बना दिया है । इसके बाद सन्‌ १९३५, में, पंडित जवादरलाल नेहरू ने चीन की यात्रा करके दोनों राष्ट्रों के चीच सम्पक तथा सौद्दाद बनाये रखा था 1 हमारे दोनों महान, राष्ट्रों के पुरातन सम्वंधों की राह में विदेशी साम्राज्यवाद दी एक रोड़ा चना हुआ था। इसीलिये, जब सन्‌ १९४७ में अंग्रेली साम्राज्यवाद ने सारत में जनता के आन्दोलन से घवराकर, बी चतुराई से कांग्रेस के दार्थों में सत्ता दस्तातरित की और उधर सन्‌ १९४९ में, चीनी जनता ने अपने को पूरी तौर से मुक्त कर लिया तो दो सहन पड़ोसी सिन्नों में पुनः सांस्कृतिक आदान-प्रदान आरंभ होगया । सितम्बर सन्‌ १८५५१ में पंडित सुंदरलाल के नेतृत्व में, भारत के प्रथम सदावना प्रतिनिधि-मंडल ने चीन के लिये प्रस्थान किया । इसी समय तिंग थी लिन के मेठृत्व में, चीनी सरकार द्वारा प्रेषित सांस्कतिक प्रतिनिधिमंडल मारत जाया था । मई सन्‌ १९४२ में श्रीमती विजयलकष्मी पंडित के नेतृत्व में, भारत सरकार ने सांस्कृतिक प्रतिनिधि-संडल चीन सेजा था । अक्तूबर सन्‌ चर हैं, पीडिंग में होनेवाली एथियाड और प्रशान्त के देशों की ान्ति- परिपद के सम्मेलन में उपस्थित होकर, सारत के अनेक्ष प्रतिनिधियों मे पद रु नमी दे सु द् प्र पे द् रद गिफ'




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