वो दुनियाँ | Vo Duniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ष वो दुनियाँ लगातार चलते हुए सहस्ताब्दियों बाद खड़ा किया है | नगर बनता है, कितनी योजनाएँ सामने झ्राती हैं, एक-एक को देख- परख कर उसका निर्माण शुरू होता है । श्रट्टालिकाएँ, गगनचुम्बी भवन खड़े होते हैं, जमीन के नीचे पाताल में रेल बिछाई जाती है, ऊपर ज़मीन पर सड़कें बनती हैं । कितना श्रम, कितना घन, कितनी बुद्धि का उसमें व्यय होता है, कितना समय उसमें लगता है । पर एक दिन जब में उठता हूँ नींद की ख.मारी भरी आँखें खोलता अ्ंगड़ाता हूँ सब तोड़ देता हूँ-- सब बरबाद कर देता हूं , एक दिन में नहीं घण्टे भर में । हिरोशिमा तर नागासाकी से पूछो मेरा तारडव । दिरोशिमा जिसके चार लाख निवासियों में से एक भी साबुत न बचा, जो बचा वह अपाहिज, निकम्मा, पागल । श्रौर नागासाकी, उसके खणडहरों से पूछो जिनकी नींव मैं राज भी आ्राग है श्र जिसकी राख के नीचे घायलों की कराह है । मु: बिस्माक॑ चाहिए था, मैंने प्रश्शा की ज़मीन पर उसे उगल दिया, मुभे केसर चाहिए था, मैंने बिस्माक का. गला घोंट उसके रक्त से केसर खड़ा किया श्रौर बैसर की नींव पर हिटलर । पहला महासमर, फिर दूसरा श्रौर उसके श्रन्त में हिराशिमा श्र नागासाकी | श्र अब यह कोरिया है, उत्तर श्रौर द्क्खिन कोरिया । मुभे उत्तर दक्खिन से कया काम में तो यहाँ बेठा इस ऊँचाई से संकेत करता हूं और दूर पैसिफ़िक पार बम फटने लगते हैं, विशाल मवन सहसा मलबे बन जाते हैं, मानव चीत्कार कर उठता है । में युद्ध हूँ--श्रंकिल सेम । देखो मेरे बनाए खण्डदरों को उस कोरिया में जहाँ कभी श्रहिंसा की संस्कृति ने श्रपना श्राडम्बर खड़ा किया था, उसके बफ़' के मैदानों में श्राज त्राग जल रही है, तीखी हवा श्राँधी बनकर राग की ज्वाला श्रासमान में उठा ले जाती है श्रौर उसे थपकी दे दे उसे नगर के इस कोने से उस कोने तक फैला देती है । लोग सर्दी से अ्रकड़े जा रहे हैं, श्रपने-पराये नहीं ्रालोक प्रकाशन




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