इतिहास में भारतीय परम्पराएं | Itihas Me Bhartiya Parampraen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इतिहास में सारतौप परम्पराएँ दी पंप्रेशी मापा मग्रेडी साहित्य दवा उनके बृप्टिकोसस सै बताया हुमा इतिहास पढ़ा बिधार्षी तो सरकार का दामाद बस सब प्रकार की को प्राप्त करने बाला बता भौर सस्झ्त-साहित्य तबा भारतीय ढंग से मिला इति वास पढ़ने बासे के सिए भपमात निरादर भौर निधतता प्राप्त हुई। पता जाति क॑ भेप्ठ परिवारों के बासऋ सरकार के ठवा योरपिंयन सम्पता के घषत थग यये । भेजी प्रकार, भारत उते विशाल देश को भ्पने भ्रपीत रत्तने थे शिए यहाँ के रहने बालों की मनोतृत्ति को अदलता धाषप्यक समझती थी । उसने इसके लिए कई साथतं का प्रयोम किया । सरकार इसाई पादरिपों को सहायता है रैकर पतके द्वारा देय की बहुसंत्यऋ जाति के धटनों को जाति से करती रही । थे पंऐरेजी साहिरय कसा तथा बिशात का प्रचार कर यहाँ कै शाम विज्ञान वी भदुनित-सपठ धौर सिद्ध करते रहे जाति की को निरर्षक घौर हाहिरारक बताते रहे इतिहास के बिपय में ऐसी करते रहे जिनसे जगता में यह सिद्ध हो सके कि यहाँ की मुख्य जाति भार्य इस देश में बाहर से भाई है भौर पहाँ के मूत शिवासी हैं थीस यौद एबं प्रग्य बसबासी जातियाँ । इस देप को एक महाइ्ीप का साम देर मे इएमें धमेके के बसे होने का प्रचार करते रहे । इस बात से इन्कार ते पर सकने पर भी कि बेद संठार के म सबसे पुरानी पुस्तक है बस्दोने यद प्रसार क्या कि यह किस्से कहानिया की पुस्तक हैं तथा मत की गस्पनाप्ा पौर प्राइतिक सै भपमीत हो उनकी पूजा अताओे पुस्तक हैं। फिर पै पुस्तक ईसा है दो-तीत पइस बंप से भषिक पुरानी गहीं हैं । सरदार मे सब को धपने हाथ ये मेऋर उनमे पढ़मे बासे बिदावियों मे मत मे सारतीय पर्मपारज भाधार-दिदर घौर परम्परायों कै लिए भभद्धा पौर धवियदास उत्पस्त काने गए दल किया । पद हो जानते थ इतना अढ़ा दैप सदा इग्सप्ड जैसे बुरदर्ती डेप के धरपीत नही रहेपा । परननु थे यहाँ की जतता को एसा बना देता चाएते थे जो शा दर्नरइ वे: पाप रहे पौर उनझा सहापक्त रहे । भप्रेजों वो पपने धनुमान है पढने हो यहाँ राजनीतिझ देनी चढ़ पईँ । पटँ की जनता मे पाते राष्ट्र सम्यूति धोर पर्स में श्रद्धा शोप होते थे पूबे ही उनरों यहाँ गे जाता पड बया । पाएय मे ९! सहानू युद्धों वे: होते है इस घापात पुल पढ़ चुरा था पौर पन्य भस्तरप्टीय शक्तियां गा ददाव




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