सत्यामृत व्यवहार कांड | Satyamrit Vyavahar Kand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70.97 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इनक | कि के छिये कुछ मेट ढावे | दोनों पक्षें की तरफ से दी गई मेंटें सन्या का खरी-धन कहलायगा | रत पर जवन भर उसी का अधिकार रहेगा | ५-वरपक्ष और कन्या-पक्ष में कोई पक्ष टा न समझा जाय | कन्या के माता-पिता मान्मार आदि गुरुजन वर-कन्या का बिनय पर छूना आदि न कं । अहियि के समान सत्कार करना उचित है | १-ग्स दिन ऋतु अनुकूल हो लोगों की कुर्सत हो हृदय में रत्साइ और आनन्द दो बद्दी शुभ दिन और शाम मुहठत है | विवाइ- बिधि सुविधानसार कसी भी समय रक्खी जा सकती है । ७ -विवाइ-बि का जरूरत है | ६१ बर-कन्या और आधाय के बैठने के छिये तीन आसन कुसियां का भी उपयोग किया जा सकता है | हू छिये निम्नाढिखित चीजों व... ५ ० ५ हा दिव्य स्थापना के छिये छोटी चाकोन व्युर या म्टूल या बाजोट जिसकी उचाइ बर- ग्घू के बैठने के आसन से कुछ अधिक डॉ | रे दिव्य स्थापन्य । धर्मा्य की के चित्र अथव किस भिि ४ मूर्तियें पत्र पर छिखे हुए या हुए सब दवा के नाम अधवा पाढी आदि में दिखे गये सबक नाम । छिखने के ये चन्दन केदार य इकू आदे रंग ठीक हैं | 9 करीब २० गज सूत का एक लच्छा | ५ सृत रंगने के लि कर चन्दन ११५ सुराबी या छाछ रंग | 5 परर्पर बर-वधू के गढ़े में डालने के रेप दे पुष्प-माछा कि. रेन्य की स्थापना दि सर व . सत्यामृत गन एवपपपलसगपरटटप-सटपननमज कैम नैमेलकयलापसफययान्यथन मदद गएएएएएययययययययसस्ययस्य्यय्य्प्प्प्प्य्य्प्प्प्प्प्प्यय सकरशवपगिइववताबाामहमाहवललसवाविववलवविलिधवलकमनन्यवकधाविकक बे न का कमल औ ला का गएएएएएययययययययसस्ययस्य्यय्य्प्प्प्प्य्य्प्प्प्प्प्प्यय करना हा ता ये आठों चीजें भी हों । १ दपिक ९ रुक्ष्मी रुपया आदि ३ दपण ४-जछपं करी ८ चखा | इनके छोटे छोटि नमूने रखना चाहिये ववाह-विषधि में यह मंगल द्रव्य की विधि जरूर नह हैं इच्छा हो तो रक््खी जा सकती है | ८-दिव्य स्थापना को बीच मं करक उसके. आसपास बर-कन्या और आचायें छुवघानुसार बढ . विवाह विधि ९-बाद मे निम्नलिखित सज्ञलाचरण पढ़ा लाय। साधित्व जसका करण से विश्व में सज्ज्ञान का उद्योत है। है सूथ का मी सूर्य जो सारे गुणों का स्रोत है || सब सम्प्रदाय रंग हुए जिसके अनोखे रंग मे | नह यत्य प्रभु माक्षी रहे इस झुमाविाइप्र्गम || || पब सम्प्रदाय मे रहा जिसका अबंटक राज्य हू जा है कसाटी घम की जो प्रेम का साम्राज्य इ || ९ शूता फल्ती सदा सुख-शान्ति जिसके संग । माता अ्िसा हो यहां साक्षी वित्राह प्रसंग | रे || उप का भादरो जग-बिड्यात जसका नाम है | से - त्यागी ग्रवर-योगी और जो िंष्काम है | । सवदब रगा रहा क्तन्य के ही रंग में | साक्षा महात्मा राम हो वह इस विवाह -प्रसंग में || 5 | जा कमयांगी ज्ञान-भोगी नीति का रक्षक रहा ता रहा जा पीड़ितों का दुषट-दढ तक्षक रहा ॥। इसता रहा जो सम्पदा के रंग में या भंग म। नहें कृष्ण योगेश्वर रहे साक्षी पिव है-प्रसग मे ॥ ४1 जा ।नस्पृदी था किन्त था सेवक आखल संसार का | जिसको न छालच ट्ेष था उपकार या भपकार का || ता का मुति था अव्यात्म के रण-रग में | वह जिन महात्मा वीर हो स वेवाह तंग ५ तेल्वार ६-पस्तक ७ लखन ठ कल उक्कडिन . ए पम्प स्कप २रस
User Reviews
No Reviews | Add Yours...