सत्यामृत व्यवहार कांड | Satyamrit Vyavahar Kand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इनक | कि के छिये कुछ मेट ढावे | दोनों पक्षें की तरफ से दी गई मेंटें सन्या का खरी-धन कहलायगा | रत पर जवन भर उसी का अधिकार रहेगा | ५-वरपक्ष और कन्या-पक्ष में कोई पक्ष टा न समझा जाय | कन्या के माता-पिता मान्मार आदि गुरुजन वर-कन्या का बिनय पर छूना आदि न कं । अहियि के समान सत्कार करना उचित है | १-ग्स दिन ऋतु अनुकूल हो लोगों की कुर्सत हो हृदय में रत्साइ और आनन्द दो बद्दी शुभ दिन और शाम मुहठत है | विवाइ- बिधि सुविधानसार कसी भी समय रक्‍खी जा सकती है । ७ -विवाइ-बि का जरूरत है | ६१ बर-कन्या और आधाय के बैठने के छिये तीन आसन कुसियां का भी उपयोग किया जा सकता है | हू छिये निम्नाढिखित चीजों व... ५ ० ५ हा दिव्य स्थापना के छिये छोटी चाकोन व्युर या म्टूल या बाजोट जिसकी उचाइ बर- ग्घू के बैठने के आसन से कुछ अधिक डॉ | रे दिव्य स्थापन्य । धर्मा्य की के चित्र अथव किस भिि ४ मूर्तियें पत्र पर छिखे हुए या हुए सब दवा के नाम अधवा पाढी आदि में दिखे गये सबक नाम । छिखने के ये चन्दन केदार य इकू आदे रंग ठीक हैं | 9 करीब २० गज सूत का एक लच्छा | ५ सृत रंगने के लि कर चन्दन ११५ सुराबी या छाछ रंग | 5 परर्पर बर-वधू के गढ़े में डालने के रेप दे पुष्प-माछा कि. रेन्य की स्थापना दि सर व . सत्यामृत गन एवपपपलसगपरटटप-सटपननमज कैम नैमेलकयलापसफययान्यथन मदद गएएएएएययययययययसस्ययस्य्यय्य्प्प्प्प्य्य्प्प्प्प्प्प्यय सकरशवपगिइववताबाामहमाहवललसवाविववलवविलिधवलकमनन्यवकधाविकक बे न का कमल औ ला का गएएएएएययययययययसस्ययस्य्यय्य्प्प्प्प्य्य्प्प्प्प्प्प्यय करना हा ता ये आठों चीजें भी हों । १ दपिक ९ रुक्ष्मी रुपया आदि ३ दपण ४-जछपं करी ८ चखा | इनके छोटे छोटि नमूने रखना चाहिये ववाह-विषधि में यह मंगल द्रव्य की विधि जरूर नह हैं इच्छा हो तो रक्‍्खी जा सकती है | ८-दिव्य स्थापना को बीच मं करक उसके. आसपास बर-कन्या और आचायें छुवघानुसार बढ . विवाह विधि ९-बाद मे निम्नलिखित सज्ञलाचरण पढ़ा लाय। साधित्व जसका करण से विश्व में सज्ज्ञान का उद्योत है। है सूथ का मी सूर्य जो सारे गुणों का स्रोत है || सब सम्प्रदाय रंग हुए जिसके अनोखे रंग मे | नह यत्य प्रभु माक्षी रहे इस झुमाविाइप्र्गम || || पब सम्प्रदाय मे रहा जिसका अबंटक राज्य हू जा है कसाटी घम की जो प्रेम का साम्राज्य इ || ९ शूता फल्ती सदा सुख-शान्ति जिसके संग । माता अ्िसा हो यहां साक्षी वित्राह प्रसंग | रे || उप का भादरो जग-बिड्यात जसका नाम है | से - त्यागी ग्रवर-योगी और जो िंष्काम है | । सवदब रगा रहा क्तन्य के ही रंग में | साक्षा महात्मा राम हो वह इस विवाह -प्रसंग में || 5 | जा कमयांगी ज्ञान-भोगी नीति का रक्षक रहा ता रहा जा पीड़ितों का दुषट-दढ तक्षक रहा ॥। इसता रहा जो सम्पदा के रंग में या भंग म। नहें कृष्ण योगेश्वर रहे साक्षी पिव है-प्रसग मे ॥ ४1 जा ।नस्पृदी था किन्त था सेवक आखल संसार का | जिसको न छालच ट्ेष था उपकार या भपकार का || ता का मुति था अव्यात्म के रण-रग में | वह जिन महात्मा वीर हो स वेवाह तंग ५ तेल्वार ६-पस्तक ७ लखन ठ कल उक्कडिन . ए पम्प स्कप २रस




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