टीपू सुलतान | Tipu Sulatan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माँगी गई 1
डच लोग ता सीधे-सात सौदागर थे । उन यडाई चगडे में फंसन से
साफ इनकार कर दिया । परतु फ्रेचो ने जवाव दिया. “यदि नग्रेजी शेर
प्राणा स यहुत हा भय भोत हो रह हैं तो वे फौरन ही बिना डिसी रोक-टोक
के चदननगर मे टमारा आश्रय तें। आधिता यी प्राण रक्षा के लिए
फ्रासीसी बीर सिपाहा नपन प्राण देन में तनिप भी कातर न हाग।
इस उत्तर से भप्रेन जज्जित हुए, नौर जीये । बतवत्ता से ढाइ पोस
पर गगा के क्निर एटाय का एक पुराना बिता था । 50 सिपाही उसमे
रहते बा बह वभी किसी पाम न आता था । अग्रेजा ने दो कर उस पर
हेमा कर दिया । वचार सिपाटी भाग गय । उनकी तोप ताइ फोइकर
जप्रेचा न गंगा से यहा दी जौर वडे गौरव स अपनी विजय प्रतारा उस
पर फहूरा दी । नागा न समय लिया, वस, अब नप्रेजां वी खर सही ह।
नवाय यह उददण्डता न सहत करगा । दूसरे दिन 2000 नवावी सिपाही
बिन व सामने पहुंच ही थे कि जग्रेज अफसर लडजा को बही छा वित
सभागन लग । भागते जहाजा पर तडातड गोले बरसन लगे । भग्रेज
अपना गाला-वारूद नप्ट कर, और अपनी पण्डी उधाड, क्लक्त लौट
आय ।
यहाँ जाकर, उदडीन इप्णवल्लभ, जो राजवल्लभ वा पुश्न था, जौर
सॉगकर विद्रौह व नयराध में अग्रेजा वी शरण आ रहा था, उस इस डर
सवेद कर लिया कि रही यह क्षमा मागकर नवाव से न मिल जाय ।
जमीचद कनक्ते का प्रमुख व्यापारी था । सठा म जैसी प्रतिप्ठा
जगतमठ वी थी, व्यापारिया म बही दर्जा अमीचद का था । यह व्यक्ति
भारतवप दे पश्चिनी प्रदेग का बनिया था ! अग्रेजो न उसी वी सहायता
सम वगाल सम वाणिज्य पिस्तार वा सुभीता पाया था। उसी की साफत
अग्रेज गॉव-गाँव रुपया वॉटकर कपास तथा रेशमी वस्न की खरीद से खब
र्पया पा कर सके थ। उसकी सहायता न होती, तो अप्रेंज लोगा को
जपरिचितत दश मे उपनी शविंत यढाने जौर प्रतिष्ठा प्राप्त करन का मीठा
वदापि न मिलता ।
केवल व्यापारी कहन ही से अमीचाद का परिचय नहीं मिल सकता ।
टीपू सुलतान / 15
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