टीपू सुलतान | Tipu Sulatan

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Tipu Sulatan by आचार्य चतुरसेन - Acharya Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माँगी गई 1 डच लोग ता सीधे-सात सौदागर थे । उन यडाई चगडे में फंसन से साफ इनकार कर दिया । परतु फ्रेचो ने जवाव दिया. “यदि नग्रेजी शेर प्राणा स यहुत हा भय भोत हो रह हैं तो वे फौरन ही बिना डिसी रोक-टोक के चदननगर मे टमारा आश्रय तें। आधिता यी प्राण रक्षा के लिए फ्रासीसी बीर सिपाहा नपन प्राण देन में तनिप भी कातर न हाग। इस उत्तर से भप्रेन जज्जित हुए, नौर जीये । बतवत्ता से ढाइ पोस पर गगा के क्निर एटाय का एक पुराना बिता था । 50 सिपाही उसमे रहते बा बह वभी किसी पाम न आता था । अग्रेजा ने दो कर उस पर हेमा कर दिया । वचार सिपाटी भाग गय । उनकी तोप ताइ फोइकर जप्रेचा न गंगा से यहा दी जौर वडे गौरव स अपनी विजय प्रतारा उस पर फहूरा दी । नागा न समय लिया, वस, अब नप्रेजां वी खर सही ह। नवाय यह उददण्डता न सहत करगा । दूसरे दिन 2000 नवावी सिपाही बिन व सामने पहुंच ही थे कि जग्रेज अफसर लडजा को बही छा वित सभागन लग । भागते जहाजा पर तडातड गोले बरसन लगे । भग्रेज अपना गाला-वारूद नप्ट कर, और अपनी पण्डी उधाड, क्लक्त लौट आय । यहाँ जाकर, उदडीन इप्णवल्लभ, जो राजवल्लभ वा पुश्न था, जौर सॉगकर विद्रौह व नयराध में अग्रेजा वी शरण आ रहा था, उस इस डर सवेद कर लिया कि रही यह क्षमा मागकर नवाव से न मिल जाय । जमीचद कनक्ते का प्रमुख व्यापारी था । सठा म जैसी प्रतिप्ठा जगतमठ वी थी, व्यापारिया म बही दर्जा अमीचद का था । यह व्यक्ति भारतवप दे पश्चिनी प्रदेग का बनिया था ! अग्रेजो न उसी वी सहायता सम वगाल सम वाणिज्य पिस्तार वा सुभीता पाया था। उसी की साफत अग्रेज गॉव-गाँव रुपया वॉटकर कपास तथा रेशमी वस्न की खरीद से खब र्पया पा कर सके थ। उसकी सहायता न होती, तो अप्रेंज लोगा को जपरिचितत दश मे उपनी शविंत यढाने जौर प्रतिष्ठा प्राप्त करन का मीठा वदापि न मिलता । केवल व्यापारी कहन ही से अमीचाद का परिचय नहीं मिल सकता । टीपू सुलतान / 15




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