जैल से जसलोक तक | Jail Se Jasalok Tak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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No Information available about अक्षयकुमार जैन -Akshay Kumar Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)होते हुए 8 अक्टूबर को वे केलिफोनिया पहुंचे । जेसा कि स्वाभाविक
था, जय प्रकाशजी को कुछ ही दिनो मे अपने देश भारत की याद आने
लगी । तंत्र उन्होंने वहाँ रहने दाले भारतीयों के सम्बन्ध में जानकारी
प्राप्त की । वहाँ एक 'नालन्दा क्लब के नामसे सस्था थी । इसी माध्यम
से उनका भारतीया से परिचय हुआ । धीरे-धीरे उनका मन वहाँ लगते
सगा।
विश्वविद्यालय का सत्र जनवरी से प्रारम्भ होने वाला था उसमे
श्षभी 3 महीने शेप थे । जयपत्रकाश जी के पास अरे की बहुत सुविधा
नहीं थी । इसलिए उन्होंने वहाँ कुछ घन एकत्र करने के लिए समय का
उपयोग किया । केलिफोनिया में बहुत से भारतीय खेती-बाडी कर रहे
थे। उनमे से एक अयूर के बाग में उन्हें काम मिल गया 1 उन्हें आठ घण्ट
काम करना पढ़ता था जौर उसके लिए उ हें 4 ढालर प्राप्त होते थे ।
उन्होंने न छूट्टी की परवाह की और न कोई खल-तमाशों की । डटकर
काम करने लगे भर अपना खचें यहुत किफायत से चला लेते थे ।
लगभग 80 डालर हर महीने उन्होंने बचाया । यह कार्य उन्हें शेरखा
नामक एव मुस्लिम भाई के सहपोग से प्राप्त हुआ था । जपप्रकाशजी इस
भाई के साय ही रहते भी थे । उनके प्रभाव के कारण शेरखा की रसोई
में उन दिनो गोमास न तो पका मौर ने खाया गया ।
केलिफोनिया का यह विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालयों की
अपेक्षा बहुत बडा था! एक नगर की तरह यह अलग से बसा था जिसमें
20 हुजार से भो मधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे । जयप्रकाशजी
ने इस विश्वविद्यालय मे दाखिला ले लिया ! अमरीका में भारत की
भपरेक्षा किफायत से रहने पर भी बहुत अधिक खचचें आता था 1 जय
प्रकाशजी की आर्थिक स्थिति वमसजोर थी । उन्होंने फिर काम किया
गौर बपना खच चलाने के लिए कभी यह न समझा कि कोई काम छोटा
या ओछा है। अमरीका मे वातावरण भी ऐसा था कि वहाँ काम करने
को बुरा नहीं माना जाता । फिर भी वे इतना नहीं कमा पा रहे थे कि
इस महगे विश्वविद्यालय में रह सकें । इसलिए इयोवा दिश्वविद्यालम
मे प्रवेश ले लिया 1 यहाँ उन्होंने भारतीय छात्नो के साय ही अपने रहने
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