ईश्वर | Ishwar

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Ishwar by श्री पं. मदनमोहनजी मालवीय - Pt. Madan Mohan Ji Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदाहरण हैं । युधिष्टिरने पितामह भीष्मसे पूछा कि “बताइये, लोकमें वह कौन एक देवता है ? कौन सब प्राणियोंका सबसे चड़ा एक रारण है ? कौन बह है जिसकी स्तुति करते, जिसको पूजते मनुष्यका कल्याण होता है. ? इसके उत्तरमें पितामहननें कहा-- जगत्पमु देवदेवमनन्ते पुरुषेत्ममु । स्तुवनामतहस्रेण. पुरुषः सतततोत्थितः ॥ अनादिनिधन विष्ण॑ सर्वलोकमहेधरम । लोकाध्यक्ष॑ स्तुवानित्यं सबंहुग्खातिगों भकेतू ॥ परम यो महतेजः परमें यो महुशषप४ | परम यो महदूनह्ा परम यः परायणम्‌ |! पवित्राणों पकित्र थो संगलानां च गजल । देवतं देवतानां च सूतानां योउव्ययः पिता /। अर्थात्‌, “मनुष्य प्रतिदिन उठकर सारे जगतके खामी,. देवताओंके देवता, अनन्त पुरुपीत्तमकी सहस्र नामोंसे स्तुति करे ; सारे छोकके मद्देश्वर, ठोकके अध्यक्ष ( अर्थात्‌ शासन करनेवाले ), से ोकमें व्यापक बिप्णुकी, जो न कभी जन्मे हैं, न जिनका कभी मरण होगा, नित्य स्तुति करता हुआ मनुष्य सब दुःखोंसे मुक्त हो जाता है | जो सबसे बड़ा तेज है, जो सबसे बड़ा तप है, सबसे वड़े.ब्रह्म हैं और जो सब प्राणियोंके सबसे बड़े शरण हैं | जो पवित्रोंगें सबसे पवित्र, सब मंगछ वातोंके मंगछ,, देवताओंके देवता और सब प्राणीमात्रके अविनाशी पिता हैं ।' [. शक




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