दिव्य जीवन | Divya Jeevan

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Divya Jeevan by श्री पं. मदनमोहनजी मालवीय - Pt. Madan Mohan Ji Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१ दिव्य सितारों का घ्रमाव ध्यादश पर कायम रह सकते हैं, जब कि हम 'असुविधा-जनक चऔर बुरी परिस्थिति में काय॑ करने को बाध्य किये गये हों । हवाई किले बसना निःसार नहीं हे । हस पहले अपने सन में उन्हें बनाते हैं--अभिलाषा में उन्हें चित्रित करते हैं--और फिर.बाहर उनकी नींव रखते हैं । कारीगर मकान बनाने के पहले उसके नकशें को अपने सन,में स्थिर कर लेता है और फिर उसी' के अनुसार उस मकान को बनाता है। सुन्दर और भव्य सकान बनाने के पहले वह अपने सानसिक क्षेत्र में उसकी सुन्दर .और भव्य इसारत खड़ी कर लेता है । इसी तरह जो कुछ हम काय करते हैं, पहले उसकी सृष्टि हमारे मन सें होती है, और फिर वह. दृश्य रूप में आता है । हसारी कल्पनायें हमारी जीवन रूपी.इमारत के सानचित्र हैं । .पर यदि हम उन कल्पनाओं को सत्य . करने के लिए . जी जान से प्रयत्न न करेंगे तो उनका सानचित्र सात्र ही रद जायगा । जैसे यदि कारीगर मकान का केवल नकशा हो बनावे. और उसे सत्य रूप में प्रकट न, करे अथौत्‌ उसके अनुसार मकान न बनाये तो तो उसकी स्कीम उस नकशे ही में पूरी हो. जायगी । सब बड़े ्यादमी जिन्होंने * सहत्ता प्राप्त की हे--बड़े-बढ़े पदार्थों की प्राप्ति की है--वे सब, पहले उन सब अभिलषित पदार्थों के स्वप्न ही देखा करते थे । जितनी, स्पष्टता से, जितने आग्रह से, जितने उत्साह से, उन्होंने . '्यपने. सुख. स्वप्न की--चादर्श की, सिद्धि में प्रयत्न किया उतनी उन्हें उनकी सिद्धि आाप्त हुई । तुम अपने झादश को इसलिए सत छोड़ दो कि उसका प्रत्यक्ष रूप से. सिद्ध होना तुम्हें नद्दीं दीखता है.। छुम अपनी सारी




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