आलोचनादर्श | Aalochnadarsh

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Aalochnadarsh by श्री पं. मदनमोहनजी मालवीय - Pt. Madan Mohan Ji Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झथ श्रार परिभाषा च सतकता के साथ उसकी विगहंणा करनी चाहिए । क्योंकि द्रेषादि की प्रेरणा से न्‍्यथ के लिए (श्रकारण दी) श्रनुचित श्राक्षेप या निन्‍्दा करना दुजनों श्रौर नीचों का काम है । अस्तु, निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि श्राल्लोचना का मूल श्र्थ है निशय करना श्रौर आलोचक से तात्पये है उस सुयाग्य व्यक्ति से, जा निर्णायक के समान किसी रचना के गुणों श्रौर देपो का यथोचित निरीक्षण तथा विश्लेषण करके उनके ही श्राघार पर उस रचना का निशय करता है। साहित्यिक या साहित्य की श्राह्माचना का श्र है किसी साहित्यिक रचना का उसके गुण-देषादि के श्राधार पर निर्णय करना, रचना-कला की कसौटो पर उसे कसकर परखना धार उसमें साहित्य के लक्षणों की चरिताथ॑ता देखना । समालोाचना-साहित्य या श्रालाचनात्मक साहित्य से तात्पय है साहित्य या साहित्यिक क्षमता-पूर्ण उस रचना से, जिसमें किसी साहित्यिक रचना-कल्ला के कौशल अथवा किसी कवि या लेखक की कृति के निणंयात्मक, रूप से भ्रष्ययल करने का आकार-ध्रकार दिखलाया “गया हो, उसकी मार्मिक विवेचना श्रौर विशद व्याख्या स्पष्टता श्रौर सुबोधता के साथ की गई हो । जिसमें रचना-कला के सिद्धान्तें एवं सियमों कही उपयुक्तता, उपयोगिता श्रौर प्रयोगिता (हयावहारिकता या प्रयुक्त करने की विधि या परिपाटो) प्रकट की गई दो ।




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