श्रावक प्रतिक्रमण पाठ | Sravak Pratikraman Path
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(्ख् )
बीनानिवासी चि० कोमलचन्दसे पर्याप्त सहायता मिली दे । पुस्तकके श्रन्तमें
श्राचाय श्मितगतिका सामायिक पाठ श्र उसका बदन प्रेमलतादेवी
कुमुद' कृत हिन्दो प््यानुवाद भो दे दिया है। इस प्रकार यह पुस्तक ब्रती
श्रावकोंके लिए; उनमें प्रतिक्रमशविधिकी परिपाटी चलानेके लिये यथासम्भव
उपयोगी बनाई गई है ।
घ्रती श्रावकोंके लिए; इस प्रकारकी उपयोगी पक पुस्तक तैयार हो जाय
यह मनीषा प्रशममूर्ति त्र० पतासीबाईजीकी भी थी । पूज्य माता पतासी-
बाईका जीवन जितना साश्विक है उतना ही वे धर्मानुष्टान श्रौर श्रतिथि-
सत्कारमें भी सावधान रददती हैं । वे श्रपने घ्रतोंका बड़ी दृढ़ताके साथ पालन
करती हैं । श्रौर सदा ही स्वाध्याय श्रौर ध्यानमें दत्तचित्त रहती हैं । श्रपने
त्रिछुड़े हुए पुत्रका समागम होने पर माताको जो स्नेह होता दे बढ़ी
स्नेह इनमें हमने विद्वानों और त्यागियोंके प्रति देखा श्रौर झ्रनुभव किया है ।
विहार प्रान्तकी स्त्री समाजकी इन्होंने कायापलट ही कर दी है । एक शोर
माता चन्दाबाई जी श्रौर दूसरी श्रोर माता पतासीबाई जी ये दोनों
विहार प्रान्तकी अनुपम रत्न हैं । उसमें भी बिद्दार प्रान््तकी स्त्री समाजमें
जो धर्मानुराग, धमंशिक्षा श्रौर सदाचार दिखलाई देता है वह सब माता
पतासीबाईके पुण्य शिक्षा श्रौर श्रादश त्यागमय जीवनका फल है |
इनका शास्त्रीय ज्ञान तो बढ़ा चढ़ा है ही, प्रवचनशेली भी तत््वस्पशं करने-
वाली दृदयग्राहिखी है । मुखमण्डल हमेशा प्रसन्न श्रौर दीसिसे आतप्रोत
रहता है । हमारी इच्छा थी कि इनकी संक्षिप्त जीवनी इस पुस्तकके प्रारम्भ
दे दी जाय । इसके लिए हमने दो बहिनोंको लिखा भी था, परन्तु उसमें
हमें सफलता नहीं मिल सकी । हम श्राशा करते हैं कि भविष्यमें इसकी पूर्ति
अवश्य हो जायगी |
इसके प्रकाशन में मुख्यरूपसे श्रार्थिक सद्दायता देनेवाले कोडरमा निवासी
श्रीमान् सेठ भाणोल्ाल जी पाटनी हैं। ये भी साधु प्रकृतिके सदूरइस्थ
हैं श्र धार्मिक कार्योंमें सहयोग करते रहते हैं ।
हमें इस पुश्तकको तैयार करके मुद्रश॒ करानेमें पर्यातत समय लगा है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...