श्रावक प्रतिक्रमण पाठ | Sravak Pratikraman Path

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Sravak Pratikraman Path  by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(्ख् ) बीनानिवासी चि० कोमलचन्दसे पर्याप्त सहायता मिली दे । पुस्तकके श्रन्तमें श्राचाय श्मितगतिका सामायिक पाठ श्र उसका बदन प्रेमलतादेवी कुमुद' कृत हिन्दो प््यानुवाद भो दे दिया है। इस प्रकार यह पुस्तक ब्रती श्रावकोंके लिए; उनमें प्रतिक्रमशविधिकी परिपाटी चलानेके लिये यथासम्भव उपयोगी बनाई गई है । घ्रती श्रावकोंके लिए; इस प्रकारकी उपयोगी पक पुस्तक तैयार हो जाय यह मनीषा प्रशममूर्ति त्र० पतासीबाईजीकी भी थी । पूज्य माता पतासी- बाईका जीवन जितना साश्विक है उतना ही वे धर्मानुष्टान श्रौर श्रतिथि- सत्कारमें भी सावधान रददती हैं । वे श्रपने घ्रतोंका बड़ी दृढ़ताके साथ पालन करती हैं । श्रौर सदा ही स्वाध्याय श्रौर ध्यानमें दत्तचित्त रहती हैं । श्रपने त्रिछुड़े हुए पुत्रका समागम होने पर माताको जो स्नेह होता दे बढ़ी स्नेह इनमें हमने विद्वानों और त्यागियोंके प्रति देखा श्रौर झ्रनुभव किया है । विहार प्रान्तकी स्त्री समाजकी इन्होंने कायापलट ही कर दी है । एक शोर माता चन्दाबाई जी श्रौर दूसरी श्रोर माता पतासीबाई जी ये दोनों विहार प्रान्तकी अनुपम रत्न हैं । उसमें भी बिद्दार प्रान्‍्तकी स्त्री समाजमें जो धर्मानुराग, धमंशिक्षा श्रौर सदाचार दिखलाई देता है वह सब माता पतासीबाईके पुण्य शिक्षा श्रौर श्रादश त्यागमय जीवनका फल है | इनका शास्त्रीय ज्ञान तो बढ़ा चढ़ा है ही, प्रवचनशेली भी तत््वस्पशं करने- वाली दृदयग्राहिखी है । मुखमण्डल हमेशा प्रसन्न श्रौर दीसिसे आतप्रोत रहता है । हमारी इच्छा थी कि इनकी संक्षिप्त जीवनी इस पुस्तकके प्रारम्भ दे दी जाय । इसके लिए हमने दो बहिनोंको लिखा भी था, परन्तु उसमें हमें सफलता नहीं मिल सकी । हम श्राशा करते हैं कि भविष्यमें इसकी पूर्ति अवश्य हो जायगी | इसके प्रकाशन में मुख्यरूपसे श्रार्थिक सद्दायता देनेवाले कोडरमा निवासी श्रीमान्‌ सेठ भाणोल्ाल जी पाटनी हैं। ये भी साधु प्रकृतिके सदूरइस्थ हैं श्र धार्मिक कार्योंमें सहयोग करते रहते हैं । हमें इस पुश्तकको तैयार करके मुद्रश॒ करानेमें पर्यातत समय लगा है ।




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