मेरा राम | Mera Ram

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कवीन्दु बेनी प्रसाद वाजपेयी - Kavindu Bani Prasad Vajapeyi

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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईश्वर का झथे १३ प्रश्नक्त्ता ने पुन प्रश्न किया सेवा-कार्य के कठिन वसरों पर भगवद्धक्ति के नित्य नियम नहीं निभ पाते तो कया कोई इज होता हैं १ दोनों में किसको प्रधानता दी जाय सेवा-काय को अथवा माला-जप को ? शंका का समाधान करते हुए सद्दात्मा गांधी ने कहा कठिन सेवा-काय दो या उससे भी करन श्रवसर हो तो भी भगवंद्ध॑क्ति यानी रामनाम बन्द दो ही नहीं सकन्ना | उसका वाह्यरूप प्रपंग- वशात्‌ बदलता रददेगा । माला छूटने से राम नाम जो हृद्थ में अंकित हो चुँका है थोड़े दी छंट सकता है | ४-इंश्वर का अ्थ कोई एंके सज्जन महात्मा गांधीं की लिखी हुई गीतावोाध नामक पुस्तक पढ़ रहे थे । क्रमश पढ़ते हुए जब वे विभ्रूतियाग नामक दसवें ध्रध्याय को पढ़ने लगे तव उनके मन में तरदद-तरद की शंकाएं उपस्थित होने लगीं । अपनी शंकाश्ों का उल्लेख रते हुए उन्दोंन मह्दारमा गांधी को इस प्रकार का एक पत्र लिखा श्राजकल श्रापकी लिखी यीतावोध पढ़ रदा हूँ शोर उसे सममांने की कोशिश करता हूँ | गीतावाधं के दसवें ्रष्याय॑ के पढने के वाद जो सवाल मेरे मनमें उठा है उसी के सिंलंसिले में यद खंत लिख रद्दा हूँ । उस में लिंखां गाया है कि श्रीकूंष्ण दजं न से कहते हैं अरे छल करने वालों का थे त भी मुमककों सम यर्वं छलयतामस्मि इस संसार में जों भीं कुछ होता है सो मेरी इजाज़न के बिना नह्दीं दो सकता । भलां चुरा भी तभी होता है जव मैं ोने देतां हूँ यच्चापि सवंभूतानां बीज त्तद॒दद-




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