षोडशी | shodshi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु थ ब न
चध्श्य श्रथत सके दा
शाम । ( पास आमेपर ) धुखिसने मकान पेर सिंधी है, गुजिह्ट्रेट साइन
काटकर भीतर घुस आये हैं, था ही पहुंचे समको । (पोड़शी चौक उठपी है)
जिसेके मजिस्ट्रेट दसपर निकतों हैं, कोस-भर दूर कैम्प ढासा। है। उुन्दवरे पिताने _
सुत्हीोको उनके पास जाकर सन हार्ट कद है। सिर्फ इतेनेद्ीसे इतना +्ने -:
होता, किन्छु साइन खुद भी मेरे ऊपर बहुत खफा हैं 1उन्दोंने पिछण सासेदो :,
बार जातामें फेसामिकी कोशिश की थी, पर मैं फैंत न सका, शा एकपरसी
ये हाथ पकड़ रिया है । ( गर। हँस देत। है । )
एककोडी . ( चेदरा फक पढ़ गया है ) हुअूर, अबकी वार तो हम
सोगोंकी सी खैर नहीं । मम
जीवावन्द दो सकता है। ( पोढ़शीके श्रति ) बदेणा लेना चाहो तो...
यह अच्छा मौका है । सुझे जे भी समिनवा सकती हो ।
घोड़शी इसर्मे जेल क्यों होगी १
जीवानन्द काचूंत है । इसके सिना के सदिवके पंजेमें फैंसा हूँ । नाइुड-
बभानकी मेसमे रहते हुए इयीके चक्कर पढ़कर मैं एक पार पन्यह बीस दिनके
दिए दवायातमें भी रह जुका दूँ । किची भी तरह जमानत चहीं सी, जसी-
ते तल देता भी कौन १ हि
ही पोढ़शी . ( उत्छ+ करठ्से ) छाप कया कभी नडुढ-वनानके मेसमें रद
[:
जीवानन्द हाँ ! उस समय एक असयनकारुडका चोयक बन था,
नासायक अर्थॉनि घोषनें कियदी तरह पिष्ड ही न छोड़ा, पुरिसिके खुषुर्द कर
पिया । खेर, पद बहुत पड़ा किस्सा है । साइब भुझे भूठा नहीं है, खूब
बहुचाचत। है । आज सी भाग सकता था, सगर ददके सारे खाट पकड़ ली
हे, हिलनेकी भी कूचत नहीं ।
घोढशी . (करोनस कण्ठसे ) कया आप ददें कथ नहीं हो ९६ है ?
जीवचिन्द नहीं.। इसके सिवाय यह दद अन्छा होसे बोला नहीं है ।
घो़शी (कुछ देर जुप रदकर ) झुक कया करना होगा १
जीवाचन्द -सिफे कदना होगा, उन अपनी इन्छासे आई हो और अपनी
इच्ठेसि यहाँ हो । इसके नद्ठे छु् मैं सारी देवोतर सम्पत्ति छोड़ दूँगा, इजाए
रुपये नगद दूँगा और नयचारासेके रुफयोंकी तो कोई बात ही नहीं ।
हू एककौदी ऊछ कहना लाइत। है पर पोढ़शीके मुदकी ओर देखकर रक जाता है।
की
जन
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