निर्वाचन पद्धति | Nirvachan Paddhti

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Nirvachan Paddhti by दयाशंकर दुबे - Dayashankar Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ विषयप्रवेश तब प्रतिनिधिःप्रणाली का श्ाविष्कार ह्या । यह सोचा गया कि राज्य के प्रत्येक भाग (माम या नगर) के समस्त नागरि क व्यवस्था-छाये मे योग देने के बजाय श्चपना। यह ॒श्रधि- कार कुछ चुने हुए सजनों को देदे, जो उनकी ओर से श्रावश्यक क्रानून की रचना श्रौर शासन कायं किया करें। ऐसे चुने हुए सज्जन प्रतिनिधिः कहलाने लगे । इस प्रकार यदि राञ्य की जन- संख्या लाखों ही नहीं, करोडां मीदहदोतो उनकी श्रोर से केवल दो तीन सौ या अधिक आदमी उक्त कायं कर सकते है । सुविधा और आवश्यकता होने पर यह संस्या बदायी जा सकती है । यह्‌ ध्यान रखा जाता है कि प्रतिनिधियों की संख्या इतनी अधिक न हो कि उनके एक स्थान में बेठने और विचार-विनिमय करने में कठिनाई हो । प्रतिनिधि प्रणाठी से सुविधा--प्रतिनिधि प्रणाली से क़ानून बनाने के काय में श्लोक सत्तात्मक भावों की रक्ता करना कितना सुविधा-जनक दहै, यह स्पष्ट है । इससे, बड़े-बड़े विस्ठृत राज्यां मं दुर दूरसे हजारों लाखों श्रादमियों को एक स्थान पर एकत्रित होने की आवश्यकता नददीं होती, उनकी श्रोर से थोड़े से ्यादमी शान्ति-पूवक विचार-विनिम य करने और क़ानून बनाने का काये करते हैं साथी सवं साधारण को यह संतोष रददता दे कि जो आदमी क्वानून बनाते हैं वे हमारे चुने हुए हैं, दमने उनको भेजा, है, वे दमारे लाभ-द्ानि का विचार करके दी क़ानून बनाएंगे, मनभाने क़ानून नहीं बनाएंगे। एक प्रकार से




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