भारतीय सामन्तवाद | Bharatiy Samantvad
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.53 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उदमव श्रोर प्रथम चरण ७ यर बात ध्यात देने योग्य है कि गुप्त साम्राज्य के केद्वीय हिंग्सा मं भर्यात आधुनिक बंगाल विहार ग्रौर उत्तर प्रदेश से किसी थी सामत सरतार द्वारा सम्राट वी श्रनुमति के बिना भूमि दान अयवा ग्राम दान करते का कोइ उदा हरण नहीं मिलता । इस प्रकार के जो भी उदाहरण मितते हैं सभी इस परिधि के बाहर सुर्रवर्ती क्षेत्रों में ही मिलते हैं जहाँ के सरदार नाम मात्र को ही गुप्त सम्राट के प्रधोन थे । साम्राज्य वे केदद्वीय प्रदेश मे यह प्रवत्ति जब गुप्त सम्राटा वा शासन समाप्ति पर था तव से शुरू हुई । कु मारामात्य महं। राज नदने मे छठी रात ने के मध्य में श्राधुनिक गया जिले से एक गाँव दान बिया था यद्यपि पहले ऐसे श्रनुसान दना गुप्त सम्राटा का विगपाधिकार था । दानपत्रों को दखने से चात हाता है कि भूमि भ्रनुदाना बे बदते पुरोहिता को दाताधों या उनके पुवजा के श्राध्यात्मिक कल्याण वे लिए पूजा प्राथना बरनी पढ़ती थी । इनके सासारिक वत्तव्या का निर्देश कटाचित ही पही विया गया हो । इसका एकमात्र उताहरण दाकाटव राजा द्वितीय प्रवरसेन का चम्मक ताम्र पन हैं । इसम एवं सहस्र ब्राद्मणो का एक गाँव दान कया गया है श्रौर उनके लिए कुछ क्त्तय भो निधारित किये गय हैं ४ उ हू हिरायत दी गयी है कि व राजा श्रौर राज्य क॑ विरुद्ध द्वाह नही करग चोरी श्रौर व्यभिचार नहीं वर्ग ब्रह्म 7या नहीं करेंग भौर राजा का अपध्य श्र्थात विप नहीं हेंगे रस ब्रतिशिवत व दूसरे गावा से लाई भी नहीं बरेंग श्रार न उनका कोई श्रनिप्ट करेंगे ।5 थ सभी दायित्व निपघात्मव हैं जिसका मतलब यह हमा कि पुराहित लोग इस रात पर भूमि का उपभोग करते थे कि बे प्रचलित सामाजिक एवं राजनीतिक पपवस्था के विस्द्ध कोई काम नहीं करेंग । टूमर दानपत्रा मं भोकता पुराहिता ने इन निधेधा को शायट एक सवसा य तथ्य के रूप मे था ही स्वीवार कर लिया जिससे इनके उल्लख की जरूरत नहीं समभी गयी नेकिन एसा मानना स्वाभाविक ही हांगा कि ब्राह्मणा ने झ्पने उदार दाताध्रा से जितना पाया बत्ले मे उ दें उसम भ्रधिक ही दिया । उठाने भ्रपन ग्रपन ग्रवीनस्थ क्षेत्रा मे शातति सु्यवस्था कायम रखी प्रजा का वण धम के निवाह का पविध कत्तव्य समकाया तथा उसके मन में राजा वे प्रति जो गुप्त काल से विभिन १ ज० ए० मसाज व० शस का०्इ० इ० जि० हे न०् ४1 थे. वही प्कियाँ ३ डे | प्ु० सि० ८ १९०६ १६४ ए० इज १०
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