हथकरघा उद्योग में बुनकरों की आर्थिक स्थिति का आलोचनात्मक अध्ययन | Hathakaragha Udhyog Men Bunakaron Ki Aarthik Sthiti Ka Aalochanatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(अरुण कुमार शिवहरे- सागर विश्वविद्यालय के शोध निबन्ध सन् १६७७ के
अनुसार) शैनः शैनः यह उद्योग अपनी मन्थर गति से आगे बढ़ता रहा और सन
१७५० के आते आते यह उद्योग अपना विशाल रुप धारणकर चुका था आस पास की
रियासतों में रानीपुर के कपड़े की काफी मांग आने लगी ओर रीवा रियासत के छीपा
लाग भी यहां कपड़ा खरीदनें आने. लगे और कुछ छीपा परिवार तो इसी उद्योग से
जुड़कर यहीं आसपास बस गए ओर तभी इस उद्योग में एक नई क्रान्ति आई
हस्तकरघे के कपड़े की रंगाई का काम प्रारभ हुआ ओर इसका वाजार काफी वड़ा
होता गयां पुस्तकों को जिल्द पर चढ़ाने के लिये भी कपडे का उत्पादन होने लगा जिसे
खारुआ के नाम से जाना जाने लगा ओर इसी कपड़े को छीपा बन्धुओं ने ईस्टइण्डिया
कम्पनी के हाथों बेचकर काफी पैसा कमाया । पर धीरे - धीरे कागज के अच्छे उत्पादन
से यह कारोबार ठप्प हो गया। बुनकर समाज काफी बड़ा हो चुका था । कारोबार में
मंदी आने खे बुनकर समाज मे एक भय व्याप्त हो गया था। जीविका चलाने का तब
कुछ साहसी नौजवान बुनकरो ने राज्यस्थान में पहने जाने वाले चौडी किनारी के
धाघरों के लिए कपड़ा तैयार करना प्रारम्भ किया जो बांड के नाम से प्रसिद्ध हुआ
और इस उत्पादन की भरवाड़ राजघरानों में घूम मचने लगी और अभावग्रस्त बुनकरों
के भरण - पोषण में इस उत्पादन ने संजीवनी का कार्य किया और हस्तकरधा उद्योग
अपने उत््कर्ष पर पहुँचने लगा।
हस्तकरथा उद्योग २५० -वर्ष..की यात्रा पूरी कर. सन् १८४० में अपने
योवनकाल में प्रवेश कर चुका था। सफेद कपड़े पर छपाई का कार्य भी प्रारम्भ हो.
गया था ओर परदे के रूप मे करई रजवाड़ं की शोभा बनने लगा ओर हस्तकरये के
कई उत्पादन बाजार में जो « ~ ` ~र ` ` 5. -< कई नामों से जाने
दि लगे। इसी समय आड़त एवं दलाली का एक धुन भी पैदा हुआ और इस उद्योग से
चिपककर रह गया ओर पूरा व्यापार इन्हीं के हाथों से गुजरने लगा , बुनकरों का.
शोषण काल यही से प्राश्मभ हुआ । सन् १६६० क आते - आते कपड़ा उद्योग का
02 मशीनीकरण होना प्रादभ हो चुका था। विदेशी वस्त्रों का आयात भी प्रार्् च {हो
User Reviews
No Reviews | Add Yours...