बेकन - विचार रत्नावली | Bekan-vichar Ratnavali

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Bekan-vichar Ratnavali by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यय । (११) है, इसका टीक ठीक हिसाब समक्षलेना चाहिये । निसको एक विषयमे विशेष व्यय करनापडता हो उसे चाहिये कि, वह किसी अन्य विषयमे कम व्ययकेरेनैसे यदि खाने पीनेमें जधिक पैसा उठता हो तो कपडे रुते बनाने मेँ कमी करनी चाये । इष्ट मि्ोके सन्मानमें यादि विशेष व्यय करनेकी आवदयकता पड़ती हो तो गाड़ी घोड़े रखनेमें कम व्यय करना चाहिये; इत्यादि.। कारण यह्‌ है कि जो पुरुष सभी कामोंमें बेहिसाब व्यय करताहि वह अवद्यमेव कुछ दिनमें निधन होनेसे नदीं बचता । जिसे अपनी सम्पत्ति ऋणसे मुक्त करानीहो उसे न तो बहुत शीघ्रता करनी चाहिये और न बहूुतविम्बही करना चाहिये; क्योकि शीघतासे उतनीही हानि होनेकी सम्भावना रहतीहै जितनी विम्ब करने से रहती है अथौत्‌ बेचने म त्वरा करनेसे जो आधा तिहाई मूल्य मेगा उसे छेठेना और देंरकरके व्यान बढ़ने देना दोनों बातैं समान हानिकारकहें । इसके अतिरिक्त जो मनुष्य झटपट ऋण- मुक्त होजाता हैं उसे फिरभी ऋणग्रस्त होनका डर रहताहै; क्योंकि ऋण होजानेसे उसे पूववत्‌ अनिष्ट व्यवहारकरनेका साहस आजाताहै । परन्तु जो मनुष्य कम क्रमसे अपना ऋण चुकाता हैं, समझबूझकर व्यय करना उसका स्वाभाविक धर्म होजातहै, जिससे उसके मन आर सम्पत्ति दोनों को छाभ पहुँचता है । न गहुः सम्पत्तिको पुनरपि भाप्तकरनेकी निसे इच्छहि उसे करी कोरी बर्तोकी ओरभी दृष्टि देनी चाहिय । सत्य तो यह है कि, थोडे ठाभके छिये हाथ उठानिकी अप्रेक्षा छोटे मोटे व्ययके कम करडेंनेमें विशेष भूषण है । एकवार आरम्भ होनानेसे जो सदेव व्यय करना पड़ता है उसके विषयमे मनुष्यको अधिक सचेत रहना चाहिये । परन्तु एकवार करके जिस व्ययको पुनः करनेकी आवश्यकता नहीं पडती उसमें उदारता भी दिखाई तो चिन्ता नहीं । ¦




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