सत्येश्वर गीता | Satyashwar Gita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
तच्ची माषा है यही जिसपर मन की छाप ।
माषा के अनुकूल कृति देती अपने आप ॥ ६२ ४
सब की बोली बोलकर जो कृति रखते याद ।
वेददी तेरे भक्त हैं. सुनते अन्तनोंद ॥ ६३ ॥
सच्चा अन्तनौद् या सत्यासत्यविवेक ।
मेरी भाषा है सुगम सब दृद्यों की पक भे ६४ तै
तेरा सन्देश
सूत्र पिटक इंजील या. मीता वेद कुरन् ।
आवस्ता या कीपटल सब उपानेषत् पुरान ॥ ६५१
सव सत्यामृत रूप हैं देश काछ अनुठार ।
देश काल के भेद से हुए अनेक प्रकार ॥ ६६ ॥
देशकाल अनुकूल बन दूर करें जो क्लेश |
सुखपथद्श्चक सब वचन हैं तेरे सन्देश ॥ ६७ ॥
सन्देशों से हैं भरा हर भाषा इर देश ।
जो जे जनित के वचन सब तेरे सन्देश ५६८ 1
तू सबका
नास्तिक झाखिक सकल जन करते तेरी चाह ।
तू ही नाना रूप में उन्हें बताता राइ ॥ ६९ ॥
जा इंश्वर को मानते वे भी तेरे भक्त |
जो न इच्च को मानते वे भी हैं. अनुस्क ॥ ७०५ ॥
तू ही आला जगत् की तू सबका विश्राम |
समी दुद्र देर लेकर तेरा नाम ॥ ७१ ॥
वीतराग भी सख॒ रहे तेरे में अनुराग |
तेरे पाने के छिये दाता सब का त्यांग ॥ ७२
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