सत्येश्वर गीता | Satyashwar Gita

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Satyashwar Gita by स्वामी सत्यभक्त

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) तच्ची माषा है यही जिसपर मन की छाप । माषा के अनुकूल कृति देती अपने आप ॥ ६२ ४ सब की बोली बोलकर जो कृति रखते याद । वेददी तेरे भक्त हैं. सुनते अन्तनोंद ॥ ६३ ॥ सच्चा अन्तनौद्‌ या सत्यासत्यविवेक । मेरी भाषा है सुगम सब दृद्यों की पक भे ६४ तै तेरा सन्देश सूत्र पिटक इंजील या. मीता वेद कुरन्‌ । आवस्ता या कीपटल सब उपानेषत्‌ पुरान ॥ ६५१ सव सत्यामृत रूप हैं देश काछ अनुठार । देश काल के भेद से हुए अनेक प्रकार ॥ ६६ ॥ देशकाल अनुकूल बन दूर करें जो क्लेश | सुखपथद्श्चक सब वचन हैं तेरे सन्देश ॥ ६७ ॥ सन्देशों से हैं भरा हर भाषा इर देश । जो जे जनित के वचन सब तेरे सन्देश ५६८ 1 तू सबका नास्तिक झाखिक सकल जन करते तेरी चाह । तू ही नाना रूप में उन्हें बताता राइ ॥ ६९ ॥ जा इंश्वर को मानते वे भी तेरे भक्त | जो न इच्च को मानते वे भी हैं. अनुस्क ॥ ७०५ ॥ तू ही आला जगत्‌ की तू सबका विश्राम | समी दुद्र देर लेकर तेरा नाम ॥ ७१ ॥ वीतराग भी सख॒ रहे तेरे में अनुराग | तेरे पाने के छिये दाता सब का त्यांग ॥ ७२




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