अपने को समझे भाग 1 | Apne Ko Samjhe Part-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.33 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसको फलरूप में अधिक कष्ट नहीं सहने पडेगे।
जीवन के योग व्यापार मे
चतुराई की आवश्यकता
आप अपने क्रोध का शमन कर लेते हैं तो सामने वाले के क्रोध का भी
शमन हो जायगा। उसकी उत्तेजना तब बढती है जब आप चिनगारी डालते हैं।
वह हजार गालिया देदे और आप एक का भी जवाब नहीं दे तो वह कब तक
बोलता जायगा ? इस रूप मे शमन और सयम का चिन्तन करने वाली आत्मा
व्यर्थ के पापों का परित्याग कर सकेगी | उदाहरण के तौर पर मैं आपको बताना
चाहता हैूँ। आपने एक पत्र कलकत्ते में रहने वाले अपने मित्र को लिखा कि मेरे
लिये वहा एक मकान की व्यवस्था कर लें और मकान मालिक से भाडा चिठद्ठी
करा लेवें - मैं आऊगा तब वहाँ पर रहूँगा। उसने कलकत्ता में एक हवेली आपके
नाम पर भाडे लेली। कलकत्ता मे तो भाडा चालू हो गया और आप नोखामडी मे
बैठे हैं और किसी दूसरे ध्यान मे हैं। सयोगवश आपका कलकत्ता जाना नहीं हुआ
और बम्बई जाने का विचार बन गया। आपने बम्बई मे मकान भाडे लेने की
व्यवस्था करा दी और सोचा कि कलकत्ता जाना नहीं होगा इससे वहाँ व्यर्थ भाडा
क्यों लगाया जाय ? व्यापार में जिस चतुराई से आप कार्य करते हैं, जीवन के योग
व्यापार मे भी आपकी उसी चतुराई की आवश्यकता है।
आपको अमेरिका मे जाकर किसी होटल में खाना नहीं खाना है या बम्बई
कलकत्ता के होटलों में खाना नहीं खाना है तो इसका त्याग क्यो नहीं कर लेते
हैं ? ऐसी अनेकानेक बाते हो सकती है। उनका त्याग कर ले तथा अपने भोग
परिमोग की मर्यादाएँ अगीकार कर लें तो व्यर्थ के पापों की पोटली तो सिर पर
नहीं बधेगी | जैसी स्थिति सामने हो, उसके अलावा व्यर्थ के कार्यों के त्याग कर
लें तो यह आपकी चतुराई होगी। चौदह नियम पद्धति से भी त्याग करना चाहें तो
कर सकते हैं । प्रतिदिन के हिसाब से भी एक फार्मूला बना सकते हैं। रोजमर्रा इन
चीजो की जरूरत है, इतना व्यापार करेगे इन-इन दुकानों से इतना-इतना माल
मगावेंगे - उसका अनुमान लगा कर उससे भी कुछ ज्यादा मात्रा रख ले और
बाकी सारी क्रिया व पदार्थों का त्याग कर ले तो व्यर्थ के पाप कर्मों से आपकी
आत्मा भारी नहीं बनेगी। इसका शायद कई भाइयो को विज्ञान नहीं है। लालसा
और तृष्णा के चक्कर में व्यर्थ ही पाप कर्मों का बध हो जाता है और आत्मा को
मोगने के लिये निर््थक रूप से कष्ट बढ जाते हैं । चलते-चलते कभी ऐसे प्रसंग
आ जाते हैं कि मुह के सामने तक आया हुआ नवाला भी चला जाता है याने की
एकदम सामने तक आकर शुभ सयोग हाथ से निकल जाता है तो उस समय बडी
अपने को समझे /9
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