महादेवभाई की डायरी भाग - 1 | Mahadevabhai Ki Dayari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
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No Information available about नरहरि द्वा. परीख - Narahari Dwa. Parikh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)या ज्यादातर अछूतोंकी माँग अलग मताधिकारके लिझे थी । और मैं चाहूँगा कि
आप उझिसमें यह ज्यादा स्पष्ट करें कि अछूतोंको अलग मताधिकार देकर जनताके
शरीर पर भर्यकर आधात किया जा रहा है । वैसे बहुतसे भीमानदार अंग्रेज भी
जिसे समझ नहीं सकेंगे ! ? बापू बोले -- “ जिससे ज़्यादा सफाओ देने बेठेंगे,
तो यह बयान करना चाहिये कि मुसलमार्नोका सिस कामम क्या हिस्सा रहा ।
जिससे मुसलमानोंकि साथ बेर बढ़ेगा । यदद तो असा ही हुआ जेसा झुस २१
दिनवाले झुपवासके समय हुआ था ओर मुहम्मदअलीने कितने ही वाक्य निकलवा
दिये थे | ” मेनि कदा -- ८ कुछ छोग कहेंगे कि हिन्दू समाजने जो पाप किया
है झुससे भी यह' पाप भयंकर कहलायेगा कि झुनके खिल्यफ अप्रपको अनदान
करना पद्या १” वापर बोले -- “हम तो हिन्दू समाजसे झुसका पाप घुलवा रहे थे। .
यह कृत्य तो झुस पापको स्थायी बनाने जैसा है या सुसे न धोने देनेके बराबर
है । देशमें गृहयुद्ध करानेके सिवा भिसका ओर को नतीजा हो ही नहीं
सकता, -- युद्ध सवणे हिन्दू ओर अछूतों तथा हिन्दू और सुसलमानेकि बीच होगा । »
| वल्लमभाओने कहा -- ^“ मेरी तरफसे तो अब्र मी जिनकार है, मगर
, अब आपको जसा ठीक कगे वेसा कीजिये । ” -
बापु पत्रको सुधारने वेठ शये, ओर सुधारकर सो शये ।
रातको बारह जेक बजे तक मुझे नींद ही नहीं आयी । पौनेचार बजे
प्राथनके किञ जागे । यह हाथ धोकर प्राथनाके किञि बैठे; तो बाएने प्राथनाका
क्रम सुनाया -- « वल्लमभाओसे श्छोक बुख्वाते ईह । जिन्हें संस्कृतका ज्ञान जरा
भी न होनेके कारण झुश्चारण बहुत अझुद्ध दोते थे । खञि मेनि विचार किया क्रि `
जिन झुन्ारणोंको सुधारनेका जिसके सिवा दूसरा रास्ता नहीं । तुम देखोगे कि बहुत
फक पढ़ गया है। भजन में बोलता था । जवानी तो कुक था दी नहीं; जिसलिे
हम तो अकके बाद ओक भजन ठेकर पने खगे। आज मराठी शुरू करनेवाले थे ।
अब तुम रामधुन और भजन चढाओ । ”> मेने बाप्रूसे ही रामघुन चलानेको
कहा । यह बात रातको हुआ थी । मैंने पहला भजन ५ प्रमु मेरे अवगुण चित
न धरो” गाया । अक्के सिवा में और क्यागा सकता था
सुबह प्राथनाके बाद सोनेकी कोशिश की, मगर न सो सका । सुबह चाय
पीनेका मैंने तो हाँ कहा था । वल्लभभाओीसे पूछा कि क्यों;
११-३-३२.. आपने चाय पीना बन्द कर दिया है? तो वे बोले -- “ यहीँ
बाप्रके साथ अब क्या चाय पियें ! मेंने तो तय कर छिया है कि
वे जो खाय सो खाना । चावल छोड़ दिया, ओर साग अुबालनेका निश्चय किया
ओर दो बार दूध रोटी खानेका । बाए भी रोटी खाते दँ । ” चायंके निना न
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