हिंदी शब्दसागर | Hindi Shabd Sagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
96.16 MB
कुल पष्ठ :
579
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऊुड़्प कड़प-संज्ञा पुं० दे कडव । कुड़पना-करिं० स० हिं० कुंड -- दल की लर्कार कंगनी के खेत को उस समय जातना जब फूसल एक एक बित्त की हा जाय । ० अ० अनु सन ही सन कुढ़ना । कुड़कुड़ाना । कड़म्ल-संज्ञा पुं० दे कडमल । कडरिया-संज्ञा ख्री दे० कड़री कुड़री-संशा ख्री० सं० कुंडली १ गे डुरा । इंडरी । बिड़ई । बिड़वा । २ वह भूमि जो नदी के घूमने से बीच में पड़ कर तीन तरफू जल से घिर जाय । कुडरिया । कुड़्छ-संज्ञा श्री सं० कुंचन शरीर में ऐंठन जो रक्त की कमी वा उसके ढंढे पड़ने से होती है। यह श्रवस्था मिरगी श्रादि रोगों में वा निर्बलता के कारण होती है । तशन्नुज । कुड़व-संज्ञा पुं० सं० लोहे या लकड़ी का श्रन्न नापने का एक पुराना समान जो चार अंगुल चौड़ा ओर उतना ही गहरा होता था। विध्योेष--१२ प्रकृति या मुट्ठी का एक कड़व और ४ कड़व का एक प्रस्थ दोता है । पर वद्यक में कड़व ३२ तोले का होता हे ओर प्रकृति १६ ताले की मानी जाती है । कुड़ा-संश्ञा पुं० सं०.कुट्ज इंदजा का चूत्त । कुरैया । संज्ञा पुं० दे० कुढ़ा ? । कुड़ाली-संज्ञा ख्री से० कुठारी कददाड़ी लश० । कुडुक-संज्ञा पुं० देश० | प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिस पर चमड़ा मढ़ा होता था । संज्ञा ख्री फ़ा० छुरक १ अंडा न देनेवाली मुर्गी । २ व्यर्थ । खाली । मुद्दा ०--कुडुक बोलना व्यर्थ हाना । साली जाना | कुडेर-संज्ञा ख्री० दिं० डुडेरना वह नाली जो क्रिया में राब का सीरा निकालने के लिखे बनाई जाती है। न कुडेरना-क्रि- स० देश० राब के बारों को एक दूसरे पर इस प्रकार रखना जिसमें उसकी जूसी बह कर निकल जाय । से० ड+ हिं० डैल बेढंगा । भद्दा । कुडमल-संज्ञा पुं० सं० १ कली । मुकल | २ इकीस नरकों में से एक नरक । कु ग-संद्ञा पुं० सं० कु+ हिं० ढंग बुरा ढंग । कचाल । बुरी रीति | वि० १ बुरे ढंग का | बेढंगा । भद्दा । बुरा । उ०--कढूँग कोप तजि रंग रली करति जुवति जग जाइ । पावस बातन गूढ़ यह बूढ़नहू रेंग होइ ।--बिहारी । २ बुरी तरह का । घदू-ब्रज़ा । कुढंगा । मा कुढगा-वि० हिं० झुढंग स्ी० 9 1 बुरी चाल का । बेश- . ऊर । उजडु । २ बेढंगा । भद्दा। . कुढंगी-वि० हिं० कुढ़ंग कुमार्गी । बुरी चालचलन का | उ०-- कूतका परथो एक पतित पराउ तीर गंगा जू के कुटिलि कृतप्ली कोडढ़ी कु ठित कुढंगी अंध ।--पद्माकर । कुट्न-संज्ञा ख्री० सं० नुद्ध प्रा० कुड्ढ १ वह क्रोध जा मन ही मन रहे । वह क्रोघ जा. भीतर ही. भीतर रहे प्रकट न किया जाय । चिढ़ । २ वह दुःख जो दूसरे के श्निवाय्ये कष्ट को देख कर हो । कुढ़ना-करि० अ० सें० क्रुद प्रा०८ कुड्ड १ भीतर ही भीतर क्रोध करना । मन ही मन खीकना -वा चिढ़ना.। बुरा सानना । २ डाह करना । जलना । उ०--चंद्रगुप्त से उसके भाई लोग बुरा मानते थे और महानंद अपने ओर सब पुत्रों का पक्ष कर के इससे कुढ़ता था ।--हरिश्चंद्र । ३ भीतर ही भीतर दुः्खी होना । मसासना । उ०--देवकी जी ने कहा कि पुत्र तुम्हारे छुः भाई जा कंस ने मार डाले हैं उनका दुःख मेरे मन से नहीं जाता 1... ...... श्रीकृष्णुचंद्र॒ इतना कह पाताल पुरी को गये कि माता तुम अब मत कुढ़ो मैं झ्रपने भाइयों को अभी जाय ले आता हूं ।--जतलू | ४ दूसरे के कष्ट को देख भीतर ही भीतर मसेास कर रह जाना । कुढब-वि० सं० कु +हिं० दब १ बुरे ढंग का । बेढब । २ कठिन । दुस्तर । कुढ़ा-संज्ञा पुं- अ० करहा सूज़ाक के रोग में वह गाँठ जो पेशाब की नली में पड़ जाती है श्रौर जिसके कारण पेशाब बाहर नहीं निकलता और बड़ी पीड़ा होती है । यह गाँठ रक्त और पीब के जम जाने से भीतर पड़ जाती है । कुढ़ाना-क्रि० स० हिं० कदना १ क्रोध दिलाना । चिढ़ाना । खिसाना । २ दुग्खी करना । कलपाना । कुश-संज्ञा पुं० सं० 1 १ । चीलर । २ नाभि की सेल । कीट । डे बच्चा । उ०--काल कालकुण कीचर माहीं । बल ते सिरे सकाप तहाँ हीं ।--गोपाल । कुणप-संज्ञा पुं- सं० १9 शव । खत शरीर । लाश । २ इंगुदी। गोंदी । ३ राँंगा । ४ बरछा । भाला । कुणपा-संज्ञा ख्री स० बरछी । भाला । कुणपाद्षी-संज्ञा पुं० सं० १ एक प्रकार का प्रेत जो मुर्दा खाता है । २ मुद्दों खानेवाला जंतु जैसे--गीघ को गीदुड़ । कुणि-संज्ञा पुं० स० 9 हुन का पेड़ । २ वह मनुष्य जिसकी बाहु टेढ़ी हो गई हे। वा मारी गई हे । कुत्तक-संज्ञा पुं० दे० कुत्तका । कुतका-संज्ञा पुं- दिं० गतका 9 गतका। २ मोटा दूंढा । साँटा । उ०--ले कतका कहे दम्म मदारा । राम रहे उनहूँ ते न्यारा ।--कबीर | ३ मांग घोटने का _ दडा । भगधघोटना | कं
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