सांस्कृतिक भारत | Sanskritik Bharat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sanskritik Bharat by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

Add Infomation AboutBhagwatsharan Upadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(~ सांस्कृतिक भारत वया संस्कृति भी यही है ? लगती कुछ ऐसी ही है, सभ्यता से ही मिलती - जुलती-सी, पर है वह सवंधा सम्यता ही नहीं यद्यपि उसका भी इतिहास है, सभ्यता से मिला-जुला इतिहास है, उससे मिलता-जुलता इतिहास है। यहाँ पर संस्कृति दाब्द पर भी कुछ विचार कर लेना संस्कृति के स्वरूप को शायद कुछ स्पष्ट कर देगा । संस्कृति दब्द का प्रयोग प्राचीन नहीं है । संस्कृत में उसका इस ग्रथ में तो प्रयोग नहीं ही हुभ्रा है, शायद इस दाब्द का ही कभी प्रयोग नहीं हुप्रा, उन प्राचीन प्रान्तीय भाषाश्ों तक में नहीं, जिन्हें प्राकृत कहते हें। इधर हाल में ज़रूर प्रान्तों को साहित्यिक भाषा में इसका प्रयोग होने लगा है श्रौर उसी श्रथ में, जिस अ्रथं की हम यहाँ परिभाषा श्रौर व्याख्या करना चाहते हैं। जिस संस्कार शब्द से संस्कृति शब्द बना है, उसका प्रथं है कच्ची धातु को शुद्ध करना, उससे लगी खान की मल हटाकर, उसे धो-पोंछ कर, काट-छाँट कर, रगड़ कर, पालिश कर चमका देना । इसी प्रकार मनुष्य भी अपनी श्रादिम अवस्था में, व्यवित प्रौर सामूहिक दोनों रूपों में, संस्कारहीन रहा है श्रौर धीरे-धीरे भ्रपने ऊपर प्रतिबन्ध लगाकर श्रनुचित को दबाकर, उचित को लेकर ही सुन्दर बना है। व्यक्ति रूप में शरीर-मन को शुद्ध कर, एक श्रोर व्यक्तिगत विकास, दूसरी श्रोर उसका समूह में दिष्ट प्राचरण, समाज के प्रति उचित व्यापार, उसे संस्कृत बनाता है । प्राचीन भारत के वरं-ध्म में--द्विज- धर्म में--संस्कार की बड़ी महिमा थी, क्योंकि द्विज संस्कारों द्वारा ही श्रपने वर्ण में सही-सही प्रवेश करता था । वह द्विज कहलाता ही इस कारण था कि एक बार माता के गभं से जन्म लेकर, दूसरी बार संस्कारों से पवित्र होकर वह द्विजन्मा होता था | उसी तरह जेसे पक्षी द्विज कहलाता है, एक बार श्रण्डेके रूप मं जन्म लेकर, दूसरी बार श्रंडे से पक्षी बन कर । यह संस्कार दो प्रकार का होता है । एक तो वैयक्तिक, जिसमें मनुष्य भ्रपने गुणों से, अपनी सुघराई से, श्रपनी शिष्टता से चमकता है,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now