तत्त्व बोधक कल्याण शतक | Tattvvabodhak Kalyan Shatak

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Tattvvabodhak Kalyan Shatak by कल्याण श्री जी - Kalyan Shri Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) शत ज्ञान, अधी न्नानः मन परयैव न्नान, केवल- ज्ञान 1 तीन अन्नान्‌ । मति अन्नन, श्रुत अक्नानः विग अन्नान ! अने चार दर्ध॑न। चषद्शन, अचपुदशन, अवधी दशैन; केवल दशन 1ए बारं उपयोगढे। नारकी, दसभुवन पती व्यंतर, योतिपी चेमानिक, तियंच प्चेद्री, ए पन्नर देडके। नव उपयोग । तीनज्ञान, तीन अज्ञान, तीनदररीन ए नव उपयोग होय। पांच थावर ने तीन उपयोग । मति अज्ञान, श्रुतत अज्ञान, अचु दर्शन ए तीन रोय । देइंद्री, तेइद्री ने तीन तथा, पांच उपयोग होय । वेज्ञान, वे अज्ञान, एक अचझ्लु दर्शन चोरिग्रियने छे उपयोग । वे ज्ञान, वे अज्ञान, षे दर्शन मनुष्य ने चार उपयोग पामे ॥ ॥ सोटम सत्तरमं उपनण चमघानी सैरया झार ॥ सारकी, दस अुवनपती, व्यतर, योनिषी, वेमा निफ, तीयय पचरी, घण्य विकृटटरी ए अचय




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