नयी तालीम वॉल -18 वर्ष - 16 अंक -1 | Nai Talim vol-18 Varsh-16 Ank-1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
605
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धार्मिक उदारता
वपने देशमे अनेक धर्म) यह् सम्भवरहै रि जो जिस पर्म हैं, उसे वह
माने कि हमारा धर्म सवते अच्छा है । पल््तु साय-साय दरे वर्मोके प्रनि यद
आदर खे, यह् तो अवश्ये ही हना चादिष्ट । यद् एर सत्य है मानवोय जीदेन के
लिए। सभी घर्मों में कुछ-न-कुछ तत्त्व हैं। कोई धर्म ऐसा नहीं है जो दावा कर
सकता है कि साया तत्त्व हमारे ही पाप है । इस प्रकार से हम अपने धर्म का पालन
बरें और हमे लगे कि किसी धर्में में कोई अच्छाई है, कोई सत्य है, तो हम उसे
प्रहण भी करें ! एमे हम कोई वियर्मी बन जति हैं, ऐसा नही है । हमारे पर्म में
जो प्राण या, जो शक्ति थी, जो तेज था, वह आज नही है, बाहर वा ऊपरी सूप
है, कर्मकबाएड है, दिखावा है । नहीं तो हमारे थे हरिजन भाई किस प्रकार से रद
रहे हैं १ आज श्राठ करोड की सख्या है उनरी । समाज मे उनकी क्वा दशा है?
माज हिन्दू धर्म के नाम से जो धर्म प्रचलित है उसके अन्दर उनका स्थान
नहीं है । आदिवासी हैं, ये भी दूर हैं. हमसे । ईसाई मिशनवानि किरा प्रशार से
इनका यर्मात्तर कर रहे टै? वह कोई धर्म समयाकर कर रहे हैं एसी बात नहीं
है। हिन्दू घर्म अपनी संकीर्णता के कारण अपना ही नुकसान कर रहा है। वे सब
पूरते हूँ कि हिन्दू बनेंगे तो कहाँ रस्डिएगा आप ? हम बौद्ध होते हैं, ईसाई होते हैं,
मुसलमान होते हैं तब तो बराबरी के दज पर आते हैं ! यह घोड़ा विपयार्तर
हुआ । लेकिन जानबूशकर यह विपयान्तर इमलिए किया फि जो दुर्वश्ता हमारे
अन्दर आापी है, उसका परिणाम होता है कि हम अपने क। दूसरों से बचाने वे
लिए जाति-्रपा के नाम पर, छुआछूत के नाम पर, सादपाव के नाम पर एव
दीदार खड़ी कर लेते हैं और उसके भन्दर हम पैर लेते हैं अपने को ।
लोकता श्रिफ भास्था
जहाँ तक लोकतत्र दी बात है, उसके एक-एक मुद्दे को लेकर के सोचना
होगा हमें कि लोगतत को पुष्ट करने के लिए तठरुथ कया कर सकते हैं । तरणों की
मौ पार्टों होगी चुनाय ठइने के लिए, उनकी कोई अलग हुकूमत होगी, कोई
शासन खड़ा किया जायेगा, तब लोगतंत्र पुट होगा या सरसों को अमुक पार्टी में
भरती होना होगा, क्या वरना होगा ? यह समझने की जरूरत है। आज तो
वर्तमान जो परित्यिति है अपने देश की, आर स्ासकर व्रिदार की, यहं समस्यां
बहुत महत्व नौ हो गयी है। सन् ६७ के बाद से अपने देश में जो लोकतंत्र है
उसकी नौका विरउुछ डॉंवाडोच है । कब ट्ूव जायेगी, कहना मुश्किल है! इस
हालत थे अगर यह खन्देह् दा हैः क्रि द्वः भवि बोर मो 'दूमिए है, खतरे
प्रग्रस्म, ६८६ ] [४
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