न्यायदीपिका | Nyayadipika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक-कथन
व्याकरणके श्रनुसार दर्शन शब्द “रृश्यतेन्निरयीथते कस्तुतत्वसने-
नेति दशनम्” श्र॑यवा “हृश्यते निर्खीयत इदं वस्तुतत्वसिति दशेनमूं
इन दोनों श्युतपत्तियोके श्राधारपर दश् धावुसे निष्पन्न होता है । पहली
सयुत्पत्तिके श्राघारपर दशन शब्द तकं~-वितकं, मन्थनं षा परीच्तास्वरूप उसं
धिचारधाराका नाम है जो तस्वोके निणंयमें प्रयोजक हुश्रा करती हे ।
दूसरी न्युतपक्तिके श्रा धारपर दशने शम्दका श्रथं उल्लिखित विचारधाराके
दवारा निर्शाति तच्वोकी स्वीकारता होता है । इस प्रकार दर्शन शब्द
दाशनिकं जगतमे इनं दोनों प्रकारके श्रथोमिं व्यवहत हुश्रा है श्रर्थात्
भिन-मिन मर्तोकी जो तस्बसम्बन्धी मान्यतां है उनको श्रौर जिन ताकिकं
मुददोके श्राधारपर उन मान्यताश्रोका समर्थन शेता है उन तार्किक
भुददोको दशं नशाखके श्रन्तत स्वीकार किया गया है ।
सत्रसे पिले दशनोको दो भागोंमें विभक्त किया जा सकता है--
मारतीय दर्शन श्रौर श्रभारतीय ( पाश्चात्यं ) दशंन। जिनका प्रादुर्भाव
सारतवर्षमें हुआ है बे भारतीय श्रौर जिनका प्रादुमांव भारतकर्सके जाइर
पाश्चात्य देशमिं हुआ है वे श्रभारतीय ( पाश्चात्य ) दशन माने गये हैं ।
मारतीय दर्शन भी दो मार्गोंमें बिमक्त हो जाते हैं--वेदिक दशंन श्र
श्रवेदिक दर्शन । वैदिक परम्पराके श्रन्देर जिनका प्राहुमाव हुश्रा है तथा
जो बेदपरम्पराके पोषकं दर्शन हैं वे वैदिक दर्शन माने जाते हैं और
जैदिक परभ्परासे भिन्न जिनकी स्वतन्त्र परम्परा है तथा जो वेदिक परग्पराके
विरोधी दशेन हैं उनका समावेश शवेदिक दर्शनों में होता है । इस सामान्य
नियमके धारपर वेदिक दर्शनोंमें मुख्यतः साख्य, वेदान्त, मीमांसा,
योग, न्याव तथा वेशेष्रिक दर्शन श्रात्ते हैं श्र जैन, बोद्ध तथा चार्वाक
दर्शन, श्रवेदिक दर्शन ठहरते हैं ।
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