विजयप्रशस्तिसार | Vijayaprashastisar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५ विजपप्रशास्तिसार 1 प्
सुशीता सी थी 1 पद्द पतित्नता झपने पति के साथ सांसारिक
खणो को भ्ानन्द झनुभव्र करती थी | इस चघमें परायण। साथी दंवी
ने उत्तम गरस दो धार किया 1 जिस प्रकार झुक्ति में मुक्ताफल
दिन प्रतिदिन बढ़ता है। उसी प्रदार गर्भवती का गे भी दिन पर-
दिन बढ़ने लगा । इस उत्तम गर्म के प्रभाव से ग्रेठ के घर में
अुद्धिन्समाद्धि परी झधिक पृद्धि दो गई ।
नवमास पूरे दोने के अनन्तर सं० १५८३ गो मारिष सुश्री <
के दिन इस देवीने उत्तमोचम लक्तणोपेत पुत्र को जन्म दिया । शेठ
ने इस पुभके जन्मोत्लव में यहुत द उत्तमोचम कार्य किये ! शेठ
के पदां कह दिनौ रुक संगलगीत दोने सगे । यावकों को उनका
श्रकार से दान दिए । सारे नगर फे आआयाल्त वृद्ध एष प्रतन्न मन
दोकर उस मद्दोर्सव में सम्मिलित इप । “उत्तम पुरुपों का जन्म
तल को झानद देने चाला नदीं दोता दे ? चन्द्रमा की कला के
समान दिन प्रतिदिन यदद प्रतिभाशाली घालश चढ़ने लगा { जो
लोग इसको देखते थे घो यददी कदते ये कि यद भारतथये का पूष
तेजस्वी य दोगा । इस यालक की माता ने स्वप्न में 'द्वीररा-
शी' दी देखीथी । पुत्र के उत्तमोक्तम लक्षण भी छिपे हुए नहीं थे ।
झथीद घद्द दीरे की तरह चमकता था । चस कहना ही फ्या था ?
सब लोगो ने मिल कर इसका नाम सी 'दीरा' रस्त्र दिया । लोग
इसको 'दीरजी' करके पुकारते थे । फाल की मदिमसा चित्य दै ।
हुमा फया १ दमारे दीर्ध माके माता पिंताने थोड़े हो दिनों में
सम्यक्ू झार।घना पूर्वक देचछोक को अलरुत किया । कुछ दिन
व्यतीत होने के चद् दौरजी भाइ झपने माता-पिता फा शॉकदूर
करके पनी वहन को मिलने के विचार से शींद्णुदिलपाटक
( सणदिलपुर पादन ) गये । घदन अपने भाइडी सुन्दर झाऊूति को
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