सामायिक - सूत्र | Samayik - Sutra

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Samayik - Sutra by उपाध्याय अमर मुनि - Upadhyay Amar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ | वि्वक्‍्याहैर क्याहै प्रिय राज्जनो ! यह्‌ जो कुछ भी विश्व-प्रपच प्रत्यक्ष श्रववा परोध रुप में भ्रापके सामने है, यह वया है * कभी एकान्त मे टकर इस सम्बन्ध में कुद सोचा-विनारा भी है या नहीं ? उत्तर स्पाट है निहीं । श्राज का मनुष्य फितना भला हुग्रा प्राणी हे कि वाद जिस समारे में रहता-सहूता है, श्रनादि्ान मे जहां जन्म-मरण पी श्रनन्त कडियों का जोड़-तोर लगाता आया है, उसी के सम्बन्ध मे नहीं जानना कि वद्ध वस्तुत स्याह? श्रा के भोग-विनासी मनुष्या का उस प्रण्त को ग्रोर, भले टी लक्ष्य ने गया हो, परन्तु हमारे प्रालीन तन्वलानी सहापुरुपों ने इस सम्पन्प में बठी टी महन्यपूर्ग गवेय्ताएं की है । भारत के वड दार्गनिहों ने संसार की उस रदस्यपूर्ण गृन्यी पे युतकनि कै पति न्तु प्रयतते पिण्ड घोर ये घपने प्रयतता में वटतनकुदद सफन थी रण है। जन दृष्टि शा परन्तु, धरान्‌ तम पा जननो जी ससार के सम्यर्य में दार्थनिक [4 समिएनण उपतन्य (र, सनम यटि कत सत्यमे प्रापित स्पन्द नृमत्‌ प्व नवम नट्‌ पिदर, तो कद च्फय सान ण सव्व दन फेय, नदम्‌, न्दी उन यददन विम 1 भयान्‌ पम परादि सम पर्ययम कोकै नि (वर पिस अरन्यं प्रर द साय थे उभयास्मर है, सतादि नन्त है । पे पी दना हे द पक 4 ~, {४ र (नो न के वी है योर ने ग्न्त सल ता! पयतमम पारागिन्पर्यर मर,




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