द्विवेदी जी की आत्मकथा | Dwivedi Ji Ki Atmakatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ } कहानी तथा निवंध.के नमूने उपस्थित करना, उन्हें नए-नए सुसावा और समुचित परामर्श देना, विपय ऋरौर शैली के सम्बंध में उन्हें समय-समय पर संकेत देते -रदना श्र साथ ही युग की सादित्यिक प्रवृत्तियों को नई दिशामे मोडना यह सभी कार्य द्विवेदी जी ने' किया 1 वीसवीं शताब्दी मे पाश्चात्य साहिव्य श्र संस्छत्ति के सम्पर्क से शिक्षित जनता ने जो एक नया प्रकाश देखा था, जो एकं नए उच्छाहसे विद्रोः की भावना को जाग्रत क्रिया था, उस भावना को एक व्यवस्थित और सुनिश्चित मागं पर लगाना द्विवेदी जी का सबसे बड़ा कौशल था । नए; लेखकों को नए नए विषयों की श्रोर संकेत देने के लिये उन्होंने सरस्वती में राजा रवि वर्मा, न्ननभूपण राय सौधरी झ्रादि चित्रकारों के चित्र प्रकाशित कर नए नए लेखकों से उन पर काव्य-रचनाएँ कराई; अन्य मापाओं के प्रकाशित लेखों के द्राधार पर टिन्दी में लेख लिख-लिख कर नए:नए, लेखकों को नई-नई दिशा दिखाई । भापा श्रीर्‌ छंदों छी नव्रोनता श्र शुद्धता, विराम चिहो का समुचित प्रयोग, - रथं की स्पप्टता श्रौर विचारों को संगति के लिए पैराग्राफ़ों में विपय-विमा जन झादि सुधार उन्होंने सवंसाघारण में प्रचलित किया | सच तो यह है कि सम्पादक के रूप में द्विवेदी, जी ने हिन्दी मापा श्र सादिस्य की जो सेवा की उसी के कारण ग्रान तक उसकी इतनी प्रगति श्र विकास हुआ है । द्ववेदी-जी आधुनिक दिन्दी मापा : और -साहित्य के सब से बड़े निर्माता थे । झाधुनिक साहित्य को मापा--गद ग्रौर प्च दोनो-- का नव निर्माण कर द्विवेदी जीने एक. मदान्‌ कार्य क्रिया | यों




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