जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा | Jayapur Khaniya Tattvacharcha

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Book Image : जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा  - Jayapur Khaniya Tattvacharcha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शंका ६ और उसका समाधार्म १८१ १, केवत उपादान कारणसे ही कार्यं होतताहै यह मिथ्या है, क्योंकि इसके समर्थनमें शास्त्रीय प्रमाणोंका अभाव है । २. बार्यके समय केवल उपस्थितिमात्रसे कोई निमित्त कारण हो सकता है यह मिथ्या है, क्योंकि इसके समर्थनमें शास्त्रीय प्रमाणोंका अभाव है ! ३. कार्यकी उत्पत्ति सामग्रीसे ही अर्यात्‌ उपादान भौर निमभित्त कारणसे ही होती है, यह समीचीनम है, क्योकि दास्त्र इसका समर्थन करते हैं । मूलशंका ६ उपादनकी कार्यरूप परिणतिमें निमित्त कारण सहायक है या नहीं ? प्रतिशंका २ का समाधान समाधान--इस दांकाके उत्तरमे यह बतलाया गया था किं जव उपादान कार्यरूपसे परिणत होता है तब उसके अनुकूल विवक्षित द्रम्यकी पर्याय निमित्त होती है । इसकी पुष्टिम शलोकवात्तिकका पृष्ट प्रमाण उपस्थित करिया गया था, जिसमे बतलाया गया था किं निहचयनयसे देखा जाए तो प्रत्येक कार्यको उत्पत्ति विख्रसा होती है और व्यवहार नयसे विचार करने पर उत्पादादिक सहैतुक प्रतीत होते है 1 बिनतु इस आगम प्रमाणकों ध्यानमे न रख कर यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया गया है कि कार्यकी उत्पत्ति निमित्तसे होती है । उपादन जो कार्यका मूल हेतु ( मुख्ध हेतु-नि्चय हेतु ) है उसको गौण कर दिया गया है । भागममे प्रमाण दृष्टिसि विचार करते हुए सर्वत्र कारयकी उत्पत्ति उभय निमित्तसे बतलाई गई है । आगममे एसा एक भी प्रमाण उपलब्ध नहीं होता जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि उपादान ( निदचय ) हेतु अभावमे केवल निमित्तके बलसे कार्यको उत्पत्ति हौ जात्ती है । पता नहो, जव जसे निमित्त मिलते है तब वेमा कायं होता है, एेसे कथनमे निमित्तकी प्रधानतासे कार्यको उत्पत्ति मानने पर उपादानका क्या अथं किया जाता है । कार्य उपत्तिमे केवल इतना मान लेना ही पर्याप्त नही है कि गेहुँसे ही गेहूँके अंकुर मादिकी उत्पत्ति हाती ह । प्रश्न यह है कि अपनी विवक्लित उपादानकी भूमिकाकों प्राप्त हुए विना केवल निर्मित्तके बलसे ही कोई गेहू अंक्रुरादिरूपसे परिणत हो जाता है या जब गेहूं अपनी विंवक्चित उपादानकी मूमिकाको प्राप्त होता है तभी वह गेहूँके अंकुर! दिरूपसे परिणत होता है । माचार्योनि तो यह्‌ स्पष्ट शब्दोपे स्वीकार किया है कि जब कोई भी द्रव्य अपने विवक्षित कार्यकं सन्मृख होता है तमो अनुकूल अन्य द्रव्योकी पर्याय उसको उत्पत्तिम निमित्तमात्र होती है । निष्क्रिय द्रव्योमे क्रियके बिना, और सक्रिय द्रव्योमे क्रियाके माध्यम बिना जो द्रव्य अपनी पर्यायों द्वारा निमित्त होती है वहां तो इस तथ्यकों स्वीकार ही किया गया है, किन्तु जो द्रव्य अपनी पर्यायों द्वारा क्रियाके माध्यमसे निमित्त होती हैं वहाँ भी इस तथ्यकों स्वीकार किया गया है । श्री राजवाक्तिकिजीमे कहा है-- यथा भदः स्वयमन्तधटभवनपरिणामाभिसुख्ये दण्ड-चक-पौरुषेयप्रयत्नादि निमिष्तमान्नं भवति ।




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