युधिष्ठिर | Yudhishthir
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृष्णगोपाल माथुर - Krishna Gopal Mathur
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा अध्याय १३
वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि कपड़ों का एक सुंदर नगर-सा
बना हुआ है । जगह-जगह फ़ौवारे चल रहे हैं, और सुंदर
पूल-बागर वने हुए है । यह हर्य देखकर पांडवों को बड़ा
आनंद हुआ | थोडी देर सैर करने के वाद् युधिष्ठिर सब भाइयों
के साथ भोजन करने बेठे । उनके साथ कौरव मी जीमने बैठे ।
भोजन में अनेक प्रकार की चीजें बनाइ गई थीं । उनका स्वाद्
ले-लेकर वे लोग आपस में ,खूब प्रशंसा करने लगे । जिसे जो
चीज़ अच्छी लगती, बह दूसरे को दे देता था । इस तरह देन-
लेन ए दु दुर्योधन ने विष-मिली भिखाई भीमसेन को दे दी।
सीस को दुर्योधन पर किसी प्रकार का संदेह तो था ही नहीं,
उन्होंने वह मिठाई बड़े शौक से खा ली। यह देख दुर्योधन
सन-ही-मन खूब प्रसन्न हुआ । उसने समझा कि मेरा मतलब
सिद्ध हो गया है। अस्वु, भोजन हो जाने पर कौरवों ओर
पांडवों ने सिलकर बड़े आनंद से जल-बिहार किया ।
जल का खेल खेलते-खेलते संध्या हो गद। सबने जल से
निकल-निकलकर अपने कपड़े आर गहने पहने । परंतु जहर
के प्रभाव से भीमसेन गंगा के किनारे ही बेहोश होकर पड़ रहे ।
उनको किसी प्रकार की सुघबुधघ न रही । यह बात और कोड
नहीं देख पाया, सिफ़ें दुर्योधन दही जानता था । जब उसने
देखा कि भीमसेन बिलकुल होश में नहीं हैं, तो वह उनके
पास गया और हाथ-पाँव बाँधकर उन्हें गंगा में डुबो आया |
_ बांगा के सीतर-ही-भीतर सीमसेन नागलोक में पहुँचे । वहाँ सर्प
User Reviews
No Reviews | Add Yours...