व्यावहारिक - विज्ञान | Vyavaharik - Vigyan

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Vyavaharik - Vigyan by कृष्णगोपाल माथुर - Krishna Gopal Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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> फलोंकी रक्षा) --जिससे गरमी थोतल्फे सब श्पानोंमें बरायर रूगती रहे; क्योंकि एक स्वानमें ज़्यादा और एक स्पानमें कम गरमी लगनेसे भी चोतलके दुद् कानेकी संभावना है। बोतलके साथ ही साथ उसका दकन भौर स्वड़ भी गरम कर लेने चाहिये | इस प्रकार चोतल गर्म करनेसे दो काम हींगे; एक तो घोतलमें यदि कीटाणु (5७10७) होंगे, तो थे मर जायँंगे ; और दूसरे, बोतल दूबनेसे बचेगी । फर सि्नानेका काम समाप्त करके जब उनको बोतलमें भरना शुरू किया जाय, तभी थोतलढूकों गरम जरूसे निकालना चाहिये ; और उसी समय उसमें पूर्ोक्त नियमानुसार चाशनी वा फल भर देने चाहियें। इसके बाद रबड़ और दक्कन शशण्म जलले निकाल कर योतलफे मुदपर लगा देने चाहिये' । खुली हुई पिड़की या द्स्वाज़ेके निकट, जहाँ घायु आती जाती ही ऐसे स्थानोमें फल भरनेका फाम नहीं फरना चाहिये; फ्योंकि एकाएक रुएडी हवाफे ऊगनेसे चोतलके दूट जानेका डर है। ख़ास चात तो यह है कि बोतलको टूटनेसे बचानेके लिये,चाशनी भर बोतलको प्रायः समान गरम रखना चाहिये। गरम जलमें मींजे हुए एक अंगीछेकी तीन चार तह फरफे उसको एक चौकी पर बिछाना चाहिये; फिए उसके ऊपर चोतझ रखकर फल भरनेकरा काम शुरू करना चाहिये । यह काम पूरा हो ज्ञानेप्र योतलकी उठरडी न होने तक एक स्पानमें खड़ी कर देना चाहिये । इसके चाद जब योतऊ ठएडी हो जाये, तब उसको भूरे (87001) रंगके फाराज़में लूपेट फर प्रकाश न पहुँच सफनेयाले प्यानमें रख श्‌३ ०




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